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________________ २८] समदर्शी प्राचार्य हरिभद्र साख्य एव न्याय-वैशेषिक परम्परा की मान्यताप्रो का समन्वय भी है । २८ यह सब देखने पर ऐसा मालूम होता है कि बुद्ध-महावीर के पहले के समय मे वैष्णव, शैव एवं जैन परम्परा के जो स्वरूप होगे उनमे साख्य, न्याय-वैशेपिक पीर जैन तत्त्वज्ञान की कोई-न-कोई विचारणा संकलित होनी चाहिए । वैदिक परम्परा का प्रधान स्तम्भ तो है क्रियाकाण्ड-प्रधान पूर्व मीमासा । बुद्ध-महावीर के पहले के समय में इस मीमासा ने गुजरात मे स्थान पाया हो ऐसा नही दीखता । मुख्यतया उपनिपद् के ऊपर अधिष्ठित उत्तर मीमासा तो उत्तरकालीन है, अत उस पौराणिक युग में गुजरात के साथ उसके सम्बन्ध का खास प्रश्न उठता ही नहीं है। इस पर मे कहने का सार इतना ही है कि पुरातन युग मे गुजरात के प्रदेशो मे जो जो तत्वज्ञान की पद्धतियाँ प्रचलित थी वे प्राय सभी वैदिकेतर थी । २६ योगपरम्परा के साधना-अङ्ग अनेक है, परन्तु उनमे अहिंसा, तप एवं ध्यान जैसे अङ्ग प्रधान है। भक्ति-प्रधान वैष्णव-भागवत, तपः प्रधान शेव भागवत अथवा अहिंसा-सयम-प्रधान निर्गन्थ - ये सभी परम्पराएँ योग के भिन्न-भिन्न अंगो पर अल्पाधिक भार दे करके ही विकसित होती रही है। अतएव इन परम्पराओ के साथ ही योग-परम्परा सकलित थी, इसमे शका नही है। इस तरह बुद्ध-महावीर के पहले के युग के गुजरात का अस्फुट चित्र ऐसा अंकित होता है कि जिसमे तत्त्वज्ञान की दृष्टि से सभी प्रसिद्ध वैदिकेतर परम्पराएँ रही हो और योग तो उन सभी परम्परामो मे किसी-न-किसी रूपसे सकलित रहा हो। परन्तु लगभग बुद्ध-महावीर के समय से अथवा तो उनके कुछ ही वर्ष पीछे से गुजरात का चित्र ही अधिक स्पष्ट व सुरेख दिखाई देता है । चन्द्रगुप्त मौर्य ने गिरिनगर मे सुदर्शन सरोवर बंधाया।' चन्द्रगुप्त की राजधानी तो पाटलीपुत्र और २८, देखो 'दर्शन और चिन्तन' पृ० ३६०, 'प्रमारणमीमासा' प्रस्तावना (सिंघी जैन ग्रन्थमाला) पृ० १० । २६ 'पुराणोमा गुजरात' पृ० ३६ पर श्री ध्रुव का जो मत उद्धत है वह देखो। 'वोधायन' मे निषिद्ध देशो की तालिका मे पानर्त का भी समावेश किया गया है । इससे वहा आर्येतरोका प्राधान्य सूचित होता है। देखो 'गुजरातनी कीर्तिगाथा' पृ० ३५ तथा श्रीदुर्गाशकरकृत 'भारतीय सस्कारो अने तेनु गुजरातमा अवतरण' पृ० २०६ से। ___३० देखो-श्री विजयेन्द्रसूरि 'महाक्षत्रप राजा रुद्रदामा' मे रुद्रदामा का शिलालेख पृ० ८, तथा श्री रसिकलाल छो० परीख 'काव्यानुशासन' भा० २, प्रस्तावना पृ० २६ । अर्थशास्त्र मे भी सौराष्ट्रका उल्लेख है। देखो 'गुजरातनो सास्कृतिक इतिहास' खण्ड १, भाग १-२, पृ० २७ ।
SR No.010537
Book TitleSamdarshi Acharya Haribhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Sukhlal Sanghavi, Shantilal M Jain
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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