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________________ व्याख्यान पहला प्राचार्य हरिभद्र के जीवन की रूपरेखा वम्बई विश्वविद्यालय के संचालको ने मुझे 'ठकर वसनजी माधवजी व्याख्यानमाला' मे व्याख्यान देने के लिए प्रामत्रित किया। इस आमंत्रण के लिए आभार मानना या इसे भार रूप समझना, ऐसी एक मिश्र अनुभूति मेरे मन में उत्पन्न हुई । मैं चिन्तन-मनन एवं लेखन के भार से यथाशक्य दूर रहना चाहता था, तब उसी काम के उत्तरदायित्व का स्वीकार करने मे भार का अनुभव होना स्वाभाविक है, परन्तु विश्वविद्यालय जैसी सस्था के प्रामत्रण ने, मित्रो के सहृदय अनुरोध ने और ऐसे विषय के परिशीलन के लम्बे समय से मन मे पडे हुए संस्कारो ने मेरा वह भार एक तरह से हल्का किया और मै पुन. चिन्तन-मनन-लेखनकी आनन्द-पर्यवसायी प्रवृत्ति मे लग गया। ऐसा होते ही प्रारम्भ मे प्रतीत होने वाला वह भार अा-भार अर्थात् ईषद्-भार मे पर्यवसित हो गया। यही है मेरा आभार-निवेदन । प्रस्तुत व्याख्यानमाला मे कई ऐसे धुरन्धर विद्वान् व्याख्यान दे गये है कि उनके नाम एवं कार्य को देखते हुए मेरा मन उनकी पक्ति मे बैठने के लिए तैयार नही होता था, परन्तु जब व्याख्यानमाला के सचालको ने उस पक्ति मे मुझे रख ही दिया तब मै एक प्रकार से गौरव का अनुभव करता हूँ, जिसमे वस्तुत देखा जाय तो लाघववृत्ति ही मुख्य रूप से रही हुई है। आज तक के व्याख्यानो के विपयो की ओर दृष्टि डालने पर मुझे तो ऐसा भी लगता है कि मै उन पूर्व सूरियो के पथ से कुछ विलग-सा जा रहा हूँ। बहुश्रुत, इतिहासकोविद और ब्राह्मणवृत्ति के श्री दुर्गाशंकर भाई के 'भारतीय संस्कारोनुं गुजरातमा अवतरण' विषय पर दिये गये उदात्त पाँच व्याख्यान सुन रहा था, तभी मनमे विचार आया कि क्या गुजरात ने भारतीय संस्कारो का मात्र अपने मे अवतरण ही होने दिया है या उस अवतरण को आत्मसात् करके और उसे पचा कर अपनी विशिष्ट प्रतिभा एवं परम्परा के बल पर उस अवतरण को कोई अपूर्व कहा जा सके ऐसा आकार भी दिया है जो भारतीय संस्कारो मे मनोरम एवं अभिनव भी हो ? इस विचार से जब मै मेरे परिशीलन का प्रत्यवेक्षण अथवा पुनरावलोकन करने
SR No.010537
Book TitleSamdarshi Acharya Haribhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Sukhlal Sanghavi, Shantilal M Jain
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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