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________________ पुरोवचन ठक्कर वसनजी माधवजी व्याख्यानमाला की ओर से उस व्याख्यानश्रेणी में व्याख्यान देने का निमंत्रण जब मुझे मिला और मैंने उसको स्वीकार किया, तब गुजरात के किसी असाधारण विद्वान् एवं उसकी कृतियो के विषय मे कुछ कहने का विचार मेरे मन मे आया। परन्तु किस एक विद्वान् एवं उसकी किन कृतियो के बारे मे व्याख्यान दिये जायें यह एक विचारणीय विषय था। प्राचार्य हरिभद्र के पूर्ववर्ती एवं उत्तरवर्ती कितने ही जैन, बौद्ध और वैदिक विशिष्ट विद्वान् दृष्टिसमक्ष उपस्थित हुए। मेरे अध्ययन एवं चिन्तन के परिणामस्वरूप उनमे से प्रत्येक की विशिष्टता तथा असाधारणता मुझे प्रतीत होती थी, और इस समय भी होती है। तार्किक मल्लवादी और उनके व्याख्याकार सिंहगणी क्षमाश्रमण इन दोनो की कृतियाँ दर्शन और तर्क-परम्परा मे अनेक अज्ञात मुद्दो पर प्रकाश डालने में समर्थ है। श्री जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण महाभाष्यकार के रूप मे प्रख्यात हैं। शून्यवादी महायानी शान्तिदेवसूरि अहिंसा-धर्म के मार्मिक पुरस्कर्ता के रूप मे विश्वविश्रुत है । कवि-वैयाकरण भट्टि भी अपना एक विशिष्ट स्थान रखते है और ये विद्वान् तो प्राचार्य हरिभद्र के पहले तथा वलभी एवं भड़ोंच के क्षेत्र की मर्यादा मे विचरण करते थे, यह सुविदित है । श्राचार्य हरिभद्र के उत्तरवर्ती अनेक विशिष्ट विद्वानो मे से यहा तो दो-चार के नाम का ही निर्देश पर्याप्त होगा . वादी देवसूरि, प्राचार्य हेमचन्द्र, प्रसिद्ध टीकाकार मलयगिरि और अन्त मे न्यायाचार्य यशोविजयजी। इनमे से किसे पसन्द करना इस विचार ने थोडी देर के लिये मुझे उलझन में डाला तो सही, पर अन्त मे प्राचार्य हरिभद्र ने मेरे मन पर अधिकार जमाया। मैने उनके विषय मै भाषण तैयार करने का निश्चय किया तब मेरे मन मे उनकी जो विशिष्टता रममाण थी उसके खास कारण है । उनमे से दो-एक का निर्देश करना उचित होगा। प्राचार्य हरिभद्र की विशेषता प्राचार्य हरिभद्र ने प्राकृत-संस्कृत भाषा मे अनेक विषयों पर अनेक ग्रन्थ लिखे हैं, तो उस कोटि की विद्वत्ता तो प्राचार्य हेमचन्द्र तथा न्यायाचार्य यशोविजयजी मे भी है । यह सब होने पर भी प्राचार्य हरिभद्र की विशेषता केवल गुजरात मे ही
SR No.010537
Book TitleSamdarshi Acharya Haribhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Sukhlal Sanghavi, Shantilal M Jain
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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