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________________ भगवान् महावीरकी निर्वाण-भूमि पावाकी स्थिति । (ले० डॉ० राजवली पाण्डेय, एम ए., डी. लिट.. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) [भ० महावीर के निर्वाणक्षेत्र पावाके विषय में जनतर विद्वानों के विभिन्न अभिमत प्रगट हो रहे हैं। मो. राजन लिजीका प्रस्तुत लेखमी उस दिशामें एक उल्लेखनीय नमूना है। विद्वानोंके यह भभिमत । विचारणीय अवश्य है, परंतु प्रकृत विषयके निर्णायक नहीं माने जा सकते । जबसक अनुमानित स्थानों पर खननकार्य न हो और उससे कोई ऐसा पुष्ट प्रमाण उपलब्ध न हो जिससे यह सिद्ध हो कि पापा बहाही थी, तबतक जैन मान्यताको अविश्वनीय नहीं ठहराया जा सकता। जैनी राजगृह और नालन्दाके सहहरोंसे कुछ दूर पर अवस्थित पावापुरको भ० महावीरका निर्वाणक्षेत्र कई सौ वर्षोंसे मानते आ रहे हैं। खेद है, जैनोंने वहांके पुरातन चिन्हांको मिटाकर नये नये मंदिर निर्माण कर दिये हैं। इस लिये विद्वानोको शका होती है। किन्तु डॉ. जैकोबी और डॉ. लाहाने इस स्थानकोही पाषा माना था। बौद्ध अन्य 'अट्ठकथा' (पपञ्चसूदनी ३,१, ४) में लिखा है कि जब म० महावीर नालन्दाम थे, तब वह अस्वस्थ हो गये थे और उनके शिष्य उन्हें पावा ले गये थे। जहा पहुच कर वह थोडे दिनों पश्चात् दिवंगत हो गये । बौद्ध ग्रन्थके इस उल्लेख से स्पष्ट है कि पाया पहुचनेके पहले भगवान् नालन्दामें थे। मतः वह वहासे बहुत दूर न जाकर निकटके नगरमही गये जचते हैं। वर्तमान पापा नालन्दाके पास है। अत: इस पावापुरको प्राचीन पावा मानना कुछ अप्राकृत नहीं भासता। -का०प्र०] इस घातको सभी प्राचीन लेखक और आधुनिक ऐतिहासिक मानते हैं कि भगवान महावीरका निर्वाण पावा (अपापा) नगरीमें हुआ था । श्रद्धालु जैन आजकल जिस स्थानको उनकी निर्वाण भूमि समझ कर तीर्थयात्रा करने जाते हैं वह पटना जिलान्तर्गत रानगिर (राजगृह) के पास है। प्रस्तुत लेखकके मतमें माधुनिक पायाकी प्रतिष्ठा भावनाप्रसूत, पीछे स्थानान्तरित और कल्पित है। वास्तविक पावा उससे मिन्न और दूरस्थ थी। मूल प्रोंमें भगवान् महावीरके निर्वाणके सम्बन्धमें निम्नलिखित वर्णन मिलते हैं :--- (१) जैन कल्पसूत्र और परिशिष्टपर्वन्के अनुसार भगवान् महावीरका देहावसान भल्लोंकी राजधानी पावामें हुआ था । मल्लौंकी नव शाखाओं (मलकि) ने निर्माणस्थान पर दीपक जला कर प्रकाशोत्सव मनाया। (२) बौद्ध अथ मनिझम-निकायमें यह उल्लेख है कि जिस समय भगवान् बुद्ध शाक्य देशके सामग्राममें विहार करते थे उस समय निगह नातपुत (शातृपुन) अभी अभी पावाने दिवगत हुये थे (पासादिक सुत्तान्त)। (३) बौद्ध अथ अटकथासेमी इस वातकी पुष्टि होती है कि मरनेके समय भगवान् . महावीर नालन्दासे पावा चले आये थे।
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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