SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भ- महावीर स्मृति प्रेम के जथारया भूमिहार होनेसे जब कि ब्राह्मण होनेका दावा करते हैं, वहां प्राचीन ज्ञान क्षत्रिय थे। उनके मानमें नहीं आता कि ऐसामी ननय था, जब कि आर्योंमें ब्राह्मण-क्षत्रियका भेद न था। एकही पिताके दो पुत्रोंमें एक राष्ट्ररक्षक खड्गत क्षत्रिय होता और दूसरा देव अर्थक आधारी ब्राह्मण । वस्तुतः ईसा पूर्व पन्द्रहवीं सदी र णंचाल्की भनिने ब्राह्मण क्षत्रिय भेदना वीजारोपण हुआ ! यही दोनों जनपद ये, जिन्होंने सर्व प्रथम राजवनको स्वीकार किया। प्रजातन्त्रोंने बहुत पीछे तक इन भेदोंको स्वीकार नहीं किया, न बामणोंकी प्रधानता ता उनके जाति श्रेष्ट होनेकोही। शतू उसी तरहन्न प्रमाउन्त्रीय मार्च ये। आयुष जीवी आर्य होनेसे उन्हें क्षनियमी महा जाने लगा था, किन्तु वे वस्तुतः उन आर्योका प्रतिनिधित्व करते थे, जिनमें ब्राह्मण क्षत्रिपका भेद न हो पाया था। इसलिए जपरियों को मात कहे जाने एक तीडीगीचे उतरनेका भय नहीं होना चाहिए। फिर प्रजासन्त्रीय मारनमें वो वह भय औरभी अनावश्यक है जब कि हर्ने निश्चित जान पडता है, नि आगे सभीको रोटी बेटी एक होने जा रही है। जयरिया तरणों में तो कितने स्वीकार करने लगे हैं, जि मा महावीर उन्हीके वंशके थे। लेकिन हमारे जैन माई चो अवमी इसे माननेने लिए तैयार नहीं है, कि वैशाली (ववाद) ही वह नगरी थी जिसके उपनगर कुप्डमानने वर्डमानने अन्न लिग था! जिन्होंने गनप दुतियों पर बय प्रान कर 'जिन' बन-अपनी महती वीरताने लिए नहावीर नान या प्रसिद्ध हुए। यह बड़े आश्चर्य की बात है कि वैन परम्परा, म० महावीरके निवास स्थान और जन्म स्थान दोनोंको भुला कर उनकी जगह नये त्यानोको स्वीकार किया । हुण्ड जान्को वैशाली और विदेहते हटा कर अंगर्ने (टिशुभार) और निर्माण त्यान मल्लॉकी पाला (जो पडरौनाके पास पपौर हो सस्ती है) से हटा कर गयके आधुनिक स्थान पावापुरीमें ले गए। बंगाली के निवासी भार हुए हैं। भारतीय प्रमातन्त्रने अग्ने समयके अत्यन्त बल्दाली वैशाली प्रजातन्त्रक ऐतिहानिक गौरवको सिरसे सजीव पने हमारे सामने लाने लिये वह प्रपल कर रहे हैं। पार वट वे महावीर बन्तीमा मेला मनाने लगे हैं, और बैत मासके शुद्ध पीय प्रयोदर्शको हमारी नर नारी वहा इक्या हो भन्ने पुष्य इहितने प्रति श्रद्धा प्रसून अर्पित करते हैं। भारतीय प्रजातन्त्रॉन यही एक प्रमतन्त्र था, जिसकी शासन व्यवस्या और पागमेन्टरी कार्यवाही इन नाल्म है, क्योंकि बुद्ध व शासन प्रणालगने इतने प्रभावित हुए थे, कि अपने लंबळे नियमाने अनानेमें उन्होंने वैशाली व्यत्याना यात्रय लिया। दिसतार युद्धको उन्ननि लुम्बिनीको अयोको लेकर आज तकने बौद्ध न भुलाउने, उसी दन शुओंको महावीरजी उन्नमनि वैधानीको लाना नहीं चाहिए। १. पर भरि मनगदेगा। का००
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy