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________________ राम और महावीर। (ले० श्री. अयोध्याप्रसादजी गोयलीय।) [राम और महावीर भारतके महापुरूप हैं। वे विश्वभूतियों है जिनका प्रकाश लोक लिये कल्याणकर है। रामको पितृभक्ति, धैर्य, सैन्यसबारनक्रिया आदि गुण उन्हें एक आदर्श पुत्र, योद्धा और राजनीतिज्ञ प्रमाणित करते हैं। राम और लक्ष्मण राजावके प्रतीक और मर्यादापालक पुरुषोत्तम जो थे। जैन शास्त्रोंमें लिन वेसठ शलाका-पुरुषों का वर्णन है, उनमें राम और लक्ष्मण नारायण और वलभद्र माने गये हैं। रामको जैनी सिद्ध परमात्माके रूपमें पूजते हैं। महावीरभी सिद्ध परमाला है। किन्तु पहले वे तीर्यवर शलाकापुरम थे। चौवीस सार्थकर, बारह चक्रवती, नौ नारायण, नी प्रतिनारायण और नौ बलभद्र-यह जैनोंके त्रैसठ शलाकापुरुष है । उनी इनको अवतार नहीं मानते, बल्कि उनको टिम वे हम-आप जैसे हाड-मासके मानव होते है, जो अपने विशेष लोकोपकारी झायोंके कारण,महती पुण्य और महान् पदके अधिकारी हो जाते हैं । सपही अपने समयके द्रव्य क्षेत्र-कालभाव अनुरूप समिष्टिका कल्याण करते और स्वयं आत्मस्वातन्य प्राप्त करनेका उद्योग करते हैं। जो सन्मार्गसे वहक जाते हैं वह महान होकरभी पतितोन्मुख होते हैं। राम और महावीरकी महानताका संतुलन भाई भ्योध्याममादजीने प्रस्तुत लेखमें सुंदर रूपसे किया है। निस्सन्देह महावीरको महानताको प्रकाशित और प्रमाणित करनेवाला प्रतिभाशाली साहित्य अभी लिखा ही नहीं गया है। जैनाचार्याने महावीरकी अपेक्षा महावीर सदेशको विशेष महत्व दिया है। उनके उपदेशों और सिद्धान्तोंको उन्होंने खूब ही समाल कर रखा । उनको इस बातकी परवाह न थी कि कब, कहा और वैसे भ० महावीरने सिद्धातोंका प्रतिपादन किया था। उनके सिद्धातही लोके लिये कल्याण मूर्त रहे हैं। किन्तु ससारका सरागी मानव अपने उपकारीके जीते-जागते दर्शन पाकर सतुष्ट होना है। अत उसके लिये एक महती और सपूर्ण महावीर जीवन वाञ्छनीय है ! -का०प्र०] कुछ समय हुआ एक ऐसे सज्जनसे वार्तालाप करनेका अवसर प्राप्त हुआ था जो जन्म जैन हैं; जैन वातावरणमें ही सदैवसे रहते आये हैं और जैन समाजको उन्नतिसे हर्षित तया अवनतिसे दुखी होते हैं, फिरभी जैसी चाहिये वैसी जैन धर्मके प्रति उनकी श्रद्धा भक्ति नहीं है। वे महावीरसे रामके अधिक श्रद्वाल है, जैन अन्योंसे गीताको अधिक उपयोगी समझते हैं ! मुझसे उन्होंने पूछाः " आपकी रायमें राम हमारे लिये अधिक अनुकरणीय है या महावीर! सर्व साधरण के हृदयपटल पर किसके जीवनकी विशेष छाप परती है। किसका जीवन चरित्र पढतेही हम आत्मविस्मृत और आनन्दविभोर हो जाते हैं। इन दोनोंमें हमारा सच्चा आराध्य कौन है?" मैने कहाः “दोनों महापुरुष परम पदको प्राप्त हुए हैं, दोनोही अपने युगमें एक महान् आदर्श उपस्थित कर गये हैं, दोनोंही अपने अपने चुगकी परिस्थिति और आवश्यकता के अनुसार जुदा सुदा दृष्टिकोण रख गये हैं. हमें आवश्यकता और समयके अनुसार दोनोंकाही अनुकरण करना चाहिये, हमारे लिये दोनोंही भाराध्य है ! " ... २२ .
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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