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________________ श्री० किशोरीलालजी वर्मा। २९१ कुछ व्यक्तियोंका ऐसा निराधार विचार है कि मासके अतिरिक्त अन्य रूपेण शक्ति उत्पन्न नहीं हो सकती । यह पैशाचिक मनोवृति है । ऐसे व्यक्तियोंका हृदय पापाण है जो पर दुखसे नही पसीनता । इनमें दया छू तक नहीं गई है। वे केवल अभार ससारके दिखावटी वैभवोमें लिस होकर चूर हो रहे है। __मेजर जनरल सर राबर्ट मेक गेरीसनने जो ब्रिटिश साम्राज्यका प्रमुख भोजनका दक्ष डाक्टर है, कहा है कि यदि अन्न, दूध और ताजे साग बिधिपूर्वक ग्रहण किये जावे तो वे मनुष्य शरीरको बनावट और उसके कार्यक्रमको ठीक रखते है। उन्होने मासको अनावश्यकीय भोज्य पदार्थ बताया है। . एक साधारण किन्तु निराधार विचार यहभी है कि जो भोजन हम करते हैं उसके अनुसार या ७० शा तत्काल शक्ति उत्पन्न हो जाती है । होता ऐसा कुछ भी नहीं है। शरीरकी युनिट अथवा माक्टक मूल अश छोटे छोटे कण है, जिन्हें अग्रेजीमें सेल्स cells कहते है। यह सेल्स शरीरके भीतर सो मील प्रति घटेकी दरसे पृथ्वीके चक्करोंकी गतिके अनुसार दौडते रहते हैं । इस प्रकार यही कण शास्तिके आकर्षणकी लकीरो पर हो कर शक्ति उपार्जन करते रहते हैं, जिससे शरीरमे एक कृतिका मामास अथवा विजलीका चार्ज हो जाता है । अतएव शरीरकी पृथम शक्ति उसके आन्तरिक स्थानसे ही प्राप्त होती है। डा० वरघोज एक अमेरिकन डाक्टरने बताया है कि प्रत्येक पौधा फल, साग इत्यादिमें दो कारक होते है, जो विजली के पोजिटिव और निगेटिव तारोंका काम करते हैं। और जब यह समान द्वारा शरीरमे पहुंचते हैं तो पाचनक्रियाके अतिरिक्त जो रसायनकी बनावट इत्यादिमें अपामा होता है, एक विजलीको अपने रेशोंकी मिलावट द्वारा शरीरमें उत्पन्न करता है। वहीं सावा एकत्रित करते हैं और फिर धीरे धीरे उस शक्तिको निकाल देते हैं। इसका उदाहरण प्रकार है कि एक गेल्बनो मीटरके सरकिट अथवा बारोके जुड़े हुये घिराव, सेव लगा दीजिये तो ६६ हिलने लगेगी और फिर क्रमशः क जायेगी। फिर उस सेवको निकाल कर थोड़ी देर अलग ७ दाजये । जब उसमें आक्सीजन हवासे प्रवेश कर लेगी तो फिर उसको सरकिटमें लगा दीजिये । या फिर होने लगेगी। इससे यह प्रमाण मिला कि आक्सीजन गरीरमें भोजनद्वाराभी मम आती है और कार्वन डी आक्साइड निकल जाती है। इससे वह भी सिद्ध होता है भाजनसे कण अथवा सेल्स बनती है जो आकर्षण स्थानसे शफि उपार्जन करके अपनी दोडसे बिजली की उत्पत्ति करती है, जिससे शरीरकी गरमी और चलनफिरनेकी क्रिया होती हैं। इसीके हम अपनी इच्छानुसार चलते फिरते और कार्यक्रम करते हैं। जव उक्त क्रिया में किसी अमुक पदार्थसे रुकावट उत्पन्न हो जाती है और जिस अंगमे भी यह सेल्स ठीक दौड नहीं लगा हा अग शिथिल होकर बीमार हो जाता है। इससे यहमी सिद्ध होता है कि जो शति का जीवित रखती है, सकावट होनेसे तेजी से हमको भार भी सकती है। किसीका भोजन किसी १५ भी हो सकता है, क्यों कि शरीरकी धमनियोकी बनावटमें उसकी परिस्थिति के अनुसार दावा है । एतेका पेट ही हम कर सकता है, पर मनुष्य नहीं। बादाम दुतेको मार पाती वही अग शिथिल
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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