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________________ २९० म० महावीर स्मृति-प्रथ। शारीरिक क्षति होती है । मासको पकानेमें उसके जीवन प्रदान करनेवाले मूल कण समाप्त हो जाते हे और केवल तेजाव एव नायट्रोजिनिस पदार्थ अर्थात् वायु उत्पादक अन्तिम शेष रह जाते है। इन पदार्थोंको ग्रहण करनेका अर्थ केवल क्रमशः आत्मघात करना ही कहा जा सकता है | ____एके हुये मासमे नायट्रोजन मनुष्यको आवश्यकतासे कहीं अधिक और सलफर तथा फास्फोरस की राख अधिकतर रह जाती है, जिसमे मूत्र सौगुना तेजावी उस मूत्रके अनुपातसे होता है जो एक अनुमानित भोजनसे बनता है । फल और साग मासके साथ ग्रहण करने के उपरान्तभी उनके खारी नमक इस तेजाबका समीकरण नहीं कर सकते है। मेरा अनुभव है कि मासाहारयोंको बहुधा रक्तदबावके अधिक होनेके रोग शाकाहारियो की अपेक्षा अधिक होते हैं। उनके मूत्राशयभी कमजोर होते हैं। मिचीगन यूनीवसिटीके प्रो० श्री न्यूवर्गका कथन है कि अधिकांशमैं अधिक समय तक मासाहार करनेसे वमनिया मोरी हो जाती हैं और ब्राइट्स डिजीज, सिलसिलवोल अथवा बहुमूत्र और गुर्देकी बीमारिया हो जाती हैं। रूसके प्रमुख बास्टर एनीकोने भी यही प्रमाण दिया है कि कोलेस्ट्रोल जो मासकी चर्बीका मुख्य अश है, धमनियोंकी सिकुडन अथवा आर्टीरीयो स्कीलौरीसस उत्पन्न करता है । मो० मेकोलम अमेरीकाका एक प्रसिद्ध मोज्य रसायनवेत्ता डाक्टर है | उसका मत है कि मास कोई और किसी प्रकार मनुष्यके लिये उसके स्वास्थ्यको लाभकारी या आवश्यक मोज्यपदार्थ नहीं है ! भोज्य पदार्थोके मुख्याशकी रसायन क्रियाका खारी अथवा खट्टी या तेजाबी होना ही पाचन क्रियाकी विधि पर प्रभाव डालता है। रक्तकी रसायनक्रिया साधारणतः ७५ प्रतिशत खारी तथा २५ प्रतिशत खट्टी या तेजाबी होती है । फल तथा सागके नमकमी अधिकसे अधिक खारी और तेजावी हो सकते है । अत: उनकी मात्राका तीक अनुपात जानलेना उचित है। कदाचित् रक्तक तेजाबका अनुपात ठीक रहे और तेजावी भोजन ग्रहण किया जाय तो भी शरीर कार्य करता है, परन्तु इस अनुपातका घट बढ जाना सकटसे खाली नहीं है | जो भोज्य पदार्थ खारी नमक बनाते हैं वह तेजावका समीकरण करते हैं और जो तेजादी नमक बनाते हैं वह खारका समीकरण करते हैं। इस प्रकारकी क्रियायें और प्रतिक्रियायें जो भोजनसे उत्पन्न होती है, शरीरकी रसायन क्रियाको ठीक रखती है। रोटी बिस्कुट और अन्य अन्न पदार्य तेजाब उत्पन्न करते हैं और फल साग और बादाम भादि खार । यही इस प्रकार रसायन अनुपातको रक्समें ठीक रखते हैं । मास, मछली, असा एव चीन गहरे तेजावी मोज्य पदार्थ है और जब यह पाचनक्रियामें जल जाते हैं वो यह वेजाबी अनुपातको सल्फ्यूरिक एसिड युरिक एसिड और फास्फोरिक एसिड परिणत होकर बढा देते हैं । जिसझे मूत्ररोग, हृदयकी धमनियोंका रोग और एपोप्लेक्सी एक प्रकारका लकवाका रोग उत्पन्न होता है।
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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