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________________ श्री० नेमिचन्द्रजी जैन ! ज्योनिविदोका कण्ठहार बना हुआ है । शायदही ऐसा कोई भारतीय ज्योतिषी होगा, जो फल कह..। नेके लिये इसका उपयोग न करता हो । जन्मपत्र निर्माण विधिमे प्रतिपाद्य विषयसूची निम्न प्रकार , दी है। पाठक इस सूचीके आधारसे शात कर सकेंगे कि एकही प्रन्थमें कितने आवश्यक और 'उपयोगी विषयोंका समावेश किया गया है --- अथ जन्मकुण्डली-~~कलियुगफल सवत्सर फलायन फुलगोलफल- ऋतुफल मासफल पक्षफल तियिफल वारफल दिनजातफल राविजातफल योगफल करणफल गणफल योनिफल पारायुर्लमिफलाश फलानामने चन्द्रकुण्डलिकाचक्रं चन्द्रकुण्डलीफलम् । चन्द्रास्फालराश्यायुभवसापनार्य सूर्यादिकमध्यमसूर्यादिक स्पष्ट सूर्यादिकतात्कालिक मावचक्रविधि फलद्वादश भवने नवग्रहाणा द्वादशभवननिरी क्षणविधि द्वादशभवने नवग्रहाणा फल द्वादशमवनेशफल द्वादशमवने द्वादश लमफल द्वादशलमाना खामिफलं षड्वर्ग मैत्रीचक्र पड्वर्ग कुण्डलीचक्र पञ्चमहापुरुष योगफल सुतफाडनफादुर्धराकेमद्रुमवोसिवेश्यु भयचरी योगिनीफल राजयोग द्वादशायुगति नवग्रहफलदीत स्वस्थ नव प्रकार प्रहफलम् अरिष्टमग राजयोगचक्रम् , अश्वचक्रम् , शतपदचक्रम् , सूर्यकालानल चन्द्रकालानल यमद्भष्ट्राभिनाडी यन्त्र, सर्वतोभद्रचक्रम् , चन्द्रावस्याचक्र रश्मिचक रश्मिफल |... अर्थात् जन्मपत्रीमें जन्मकुण्डलीचक्र, नन्मकालीन युग-तिथि-चार-नक्षत्र-योग-करण-अयनमास-अतु-समय-योनि-गण, दृश्यतारा आदिका फल, पश्चात् चन्द्रकुण्डलीचक्र और उसका फलादेश, नवग्रह स्पष्ट चक्र, द्वादशभाव स्पष्ट चक्र, तात्कालिक चन, द्वादश स्थानोंमे महाँका फल, अहाँकी दृष्टियोंका फल, नवाश, द्वादशाश, त्रिशाशका फल, बारह मादोंमें लग्नेश आदि द्वादश घरोंके स्वामियोका फल, षड्वर्गचक्र, भनका, सुनका, दुर्धरा, केसद्रुम, आदि षोडश योर्गोका फल, बारह प्रकारसे आयुका साधन, ग्रहोंकी दीस, स्वस्थ आदि दस अवस्था है उनका फल, अरिष्ट योग, अरिष्टभंग योग, द्रव्यप्राप्ति योग, विद्या सन्तान-विवाह आदि योग, अष्टोत्तरी, विशीत्तरी और योगिनी दशा ऑका गणित और उनका फल, एव इन दशाओंकी अन्तर्दशाओंका गणित. और उनका फलादेश इत्यादि विषयोंका सनिवेश किया जाता है। - इस प्रकार अकेले इसी ग्रन्थसे कोईभी व्यक्ति अच्छा ज्योतिषी बन सकता है। त्रैलोक्यप्रकाश नामक ग्रन्थ सारा भूत, भविष्यत और वर्तमानकालीन फल लग्नापीन बताया है, इसलिये लग्नको शान, दीप, तत्त्व, माता, पिता, बन्ध, सरस्वती, देवी, सूर्य, चन्द्रादि नवग्रह, जल, अग्नि, वायु, आकाश सब कुछ बताया है । लम और ग्रहोंके सम्बन्धसे सुन्दर फलाफल बताया गया है ....' लमं देवः प्रभुः स्वामी लमं ज्योतिः परं मतम् । लग्नं दीपो महान् लोके लनं तत्त्वं दिशन गुरुः ।। लम माता पिता लमं लभ वन्धुनिजः स्मृतम् । लमवृद्धिमहालक्ष्मीलम देवी सरस्वती ॥ इस ग्रन्थमें आगे लमादि द्वादश भाव तथा उनमें रहनेवाले ग्रहोंके सम्बन्धसे लामालाम,
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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