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________________ जैन ज्योतिषकी व्यावहारिकता। (ले० श्री० ५० मिचन्द्रजी जैन, ज्योतिषाचार्य, साहित्परल, आरा) इतिहास एव विकासक्रमकी दृष्टिसे जैन ज्योतिषका जिवना महत्त्व है, उससे कहीं अधिक व्यावहारिक दृष्टिसे । जैन ज्योतिषके रचयिता आचार्योंने भारतीय ज्योतिषकी अनेक समस्याओं को वडीही सरलतासे सुलझाया है। यों तो समस्त मारतीय ज्योतिष बाड्मयही धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्थाओंको सुसम्पादित करनेवाला है। इसी कारण भारतीय आचार्याने इसे नेत्र कहा है। यहाँ नेत्र शब्द केवळ रूपक नहीं है, वस्तुतः समस्त ज्ञान विज्ञानको अवगत करने के प्रधान साधनके रूपमें व्यवहत हुआ है । कहा गया है कि - अन्यानि शास्त्राणि विनोदमानं न किंचि तेषां तु विशिष्ट मस्ति चिकित्सित ज्योतिष मन्त्रवादः पदे पदे प्रत्ययमावहन्ति । अप्रत्यक्षाणि शास्त्राणि विवादस्तेषु केवलम् । प्रत्यक्षं ज्योतिष शास्त्रं चन्द्राको यत्र साक्षिणौ ॥ यथा शिखामयूराणां नागानां मणयो यथा । तद्ववेदांगशास्त्राणां ज्योतिष मूर्धनि स्थितम् ॥ लोकाचार, लोकव्यवस्था और प्रकृति के रहस्यका परिचय पानेके लिये ज्योतिष शास्त्रको आव. श्यकता भारतीय वाड्मयमें प्रायः सर्वत्र बतलाई गई है। जैन ज्योतिपमी भारतीय ज्योतिष गाड्मयका एक अंग है, अतएव इसकाभी प्रधान उद्देश्य लोक व्यवस्थाको सम्पन्न करनेके लिये व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करना है। रिष्टसमुच्चयकी प्रारम्भिक गाथाओंसे वनित होता है कि छमत्य अल्पशानी ज्योतिष द्वारा अपने उदय और श्योपशमको जान कर धर्मसाधनमें प्रवृत्त हो, ताकि उसके कमाल निर्जरा जल्द हो सके । क्योंकि इस अनित्य समारमें केवल एक धर्मही नित्य और स्थिर रहने वाता है पतमि अ मणुअत्ते पिम्म लच्छी विजीविजं अधिरं । धम्मो जिगिंददिठो होइ थिरो निम्विअप्पेण ॥ --रि, स. ग०३ चार्य यह है कि जैन मान्यताकी दृष्टिसे यह शास्त्र भावी शुभाशुभ फलोंका द्योतक ६, पाठ ये शुमाराम फल सवारी घटित हॉग, ऐसा इस शास्त्रका दावा नहीं है। प्रत्येक आत्मा कमे करमर स्वतन्त्र है, यह अपने अद्भुत कारों द्वारा असमयमेही कमॉकी निर्जरा कर उसके सहज समान
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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