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________________ ० महामोर स्मृति-पंथ तुम बढे, पद पला विश्व, पुण्य मानवताका जयघोष, अमर शिक्षा-दीक्षाका ले प्रश्रय। शंखध्वनि प्रचुर प्रगति अमन्द। अमृतवाणीसे फूट पडा निर्दयताका दृढ भाल तोड मृतकों के प्रति जीवन अक्षय ॥ निर्मम पशुबलि हो गई भन्द॥ तुमने उस हिंसाके युगमें नर्तित था जाति-अहंताके थे दिये देशके नयन खोल। वक्षस पर समता सुधाराग। हिंसा प्रतिहिंसाके उरमें अनुराग बढा भिन्नता भूल भर भ्रातृभावका स्वर अमोल ।। वह चला पुण्य पावन पराग ॥ तुमने परार्थ बलिदान किया जुड चली भिन्न मंगुर कड़ियाँ हे 'वीर'! स्वका तुम हो महान । बननेको फिर श्रृंखला एका तुमने विनाशके खण्डहर पर हो घले एकमय-महा एकनव सृजन किया दे अभयदान ॥ वे छिन्न भिन्न भगठित अनेक ॥ तुमने बन्धनके राजीर्ण, हम जगे, जगी जगती अशेष बन्धनको ध्वस्त किया उदार! कर उच्च मन्य भारत-ललाट । दासत्व मिटाया कर निनाद जग धन्य हुआ, सीखा हमसे सम भावभावका महोचार ॥ प्रिय-'विश्व बंधु'-सिद्धान्तराद् । चिर अतीतफे धर्म वीर, चतये नूतन बन। पुनदर्शसे मुखारित हो अभिशापित जन मन ॥
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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