SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री० नंदलाल जैन मनीव, अति, अलण्य कादि रति, निक्रिय, नित्य तथा समस्त लोकाकाशमें व्याप्त है [atfused ], परंतु स्वय एक प्रदेशी है। ये गांव स्थितिम वाय या उदासीन कारण हैं, मुख्य नहीं[स्लापातमारत्वादिन्द्रिपवतः (१०९१०)] ___ जगत में यदि जीव, पदार्थ एव आकाश, ये तीनही मूल सत्तायें होती, तो दुनियाका अस्तित्वहीन हो पावर, स्यों कि जीव, पुद्दल अनन्त आवाशमें फैल जाते और उनका भान होना कठिन हो जाता । इसलिये जगत्नी स्थिति सुदृद्ध बनाये रखने के लिये ये दोनों माध्यम आवश्यक है ! मात्र धर्म द्रम्प होता तोमी जगतमा वर्तमान स्प असभवथा, और मान अधर्मही होता, तो परिवर्तनका सेप होनेसे लकवा जैसी परिस्थिति होती । मनुष्य न तो एक तरफा वेगवानही हो सकता है, और न स्थिरही । दोनॉमें रहनाही उसका स्वभाव है। धर्म तथा अधर्मके कार्य, यद्यपि, विरोधी है, पर उनका विरोध दृश्यमान नहीं है, क्यों कि ये उदासीन हेतु हैं । स्वय किसीको प्रेरित नहीं करते, पर जो गति स्थिति करते हैं, उनके लिये वे आवश्यक रूपसे सहायक है। ___फालेजॉम जय " प्रकाश " [ light ] का अध्यापन शुरू होता है तो हमें बताया जाता है कि प्रकाश किरणें शून्यमें नहीं, अपितु Ether of space के माध्यमसे हमारे पास पहुंचती है। उa Ither के विषयमें यहभी बताया जाता है कि यह कोई पदार्थ या दृश्यवस्तु नहीं है. सर्वत्र व्याप्त है. क्या गमनमें सहायक है । सक्षेपमें वह " गति माश्यम" है। आधुनिक Ether के प्रायः समी गुण “धर्म द्रव्य " में है । कुछ समय पहले इसके विषयमें विशेष पता नहीं था, पर माइलर तथा निकेलसन मोरे के प्रयोगोंसे अब स्पष्ट सिद्ध किया जा चुका है कि " ईयर" अमूर्तिक है एवं वस्तोंमे भिन्न है। पुराने समयके ये वाक्य" Ether must be something very different from terrestrial substances" अब इस निश्चित धाराको पहुच चुके हैं। Now-a-days it as agreed that ether is not a kind of matter (पुद्गल, रूपी) Being non-material its properties are quite unique. (Characters of matter such as mass, rigidity etc. never occurs in ether. I थरकी निस्क्रियताभी इन्हीं महाशयोंके प्रयोगोंसे सिद्ध है। इस प्रकार धर्मद्रन्यम ईयर के समस्त गुण विद्यमान है जैसे गति-माध्यमता, आकाश-व्याप्ति, अनतत्प, अमूर्तित्व अतएव अपौ दालिकरव इत्यादि। इसी प्रकार स्थिति माध्यम [ अधर्म द्रव्य के विषयमभी वैज्ञानिक कई श्रेणी तक हमारे साथ हैं । आइझाकन्यूटनने पेडसे गिरते हुए सेवको देखकर तर्क किया, “यह नीचे क्यों गिरा फल स्वरूप " आकर्षण-शक्ति " का सिद्धान्त प्रकट हुआ। प्रत्येक पदार्थ जा ऊपर फेंका जाता है और गिरनेके लिये स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है, तो वह एक शक्ति द्वारा पृथ्वीके केन्द्र की और आकृष्ट होता है | और वही शाक्ति उसके नीचे गिरने में कारण है। यह शक्ति बस्तुओंके भारके गुणन अथवा विपरीत दूरीके वर्गके अनुपातमें है। [F a mm/aa]
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy