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________________ श्री० नंदलाल जैन। के प्रसरण पति [Expansibility ] आदि । स्पर्शक चार युगल (१) हलका-मारी मृदु-कठिण (३) शीत-उष्ण (४) लिग्ध-रुक्ष स्पष्टही ये गुण बतलाते हैं। चार रस तो विज्ञान स्पष्टही मानता है। ___ "Four tastes hac been distinguished, salt (अम्ल), sweet (मधुर), sour () and bitter ( fami) Sweet things are best appreciated at the tip of the tongue while brtter at the back" "EE. HEWER" रसॉकी भिस्ताका कारण है, पदार्थोंमें " हाइड्रो कावन्स" की विशेष स्थिति [ Particular arrangement in thc Hydro Carbons गंधके विषयमें तो कोई विवादही नहीं हैं। रूपभी पदार्यका सामान्य गुण है । रूपके पाच प्रकारोंके विषयमें कुछ मतभेद है। विज्ञान सात रग मानता है [ VIBGOR ] जिसमें सफेद और काला नहीं है। खेतरूप सबका मिश्रण एक कृष्ण रूप सब रूपोका अभावरूप है। परन्तु जैनधर्म कृष्ण न्वेत सहित केवल पाच रूपही मानता है। यदि हम विज्ञानके इस आधारको देखें: Colour 15 a sensation caused by the action of nerves in the part of retina. Rays of different colour affect the eye differently and it is due to this difference in the occular sensation that the various colours are differentiated. It is a mixture of three primary sensations [ red, blue and green) in different properties [INTER Physics. ] तो स्पष्ट जैन मतका निरूपण उचित है । यह तो सभी जानते हैं कि जब कोईमी पदार्थ [मान लीजिये मिट्टी ] गर्म किया जाता है, और उसका तापमान बढाया जाता है; तो सबसे पहले यह वस्तु तापविकीरण (५०००८) करती है । उस समय तक इसका रूप नहीं प्रकट होता, इसलिये कालाही रहता है। फिर रूपमें परिवर्तन (लाल ५०००८) पीला (१२०००८) सफेद (१५०००८) होता है । यदि तापमान इससे अधिक किया जाये, तो अतमे नीला रा प्राप्त होगा। तात्पर्य यह कि प्राकृतिकरूपमें तो रूप पाचहीं है, और वे तापकेही परिवर्धत रूप हैं। अन्य तो इसके मिश्रण है । (जैसे हारग सफेद-लाल) यहा रूपसे रगनेवाले रग (Pigments) नहीं, अपितु प्राकृतिक नेत्र सबधी रूपही ग्राह्य है । इस प्रकार वस्तुगुणों के विषयमें तो विज्ञान पूर्णरूपसे मेल खाता है। विज्ञानमेंभी, पुद्गलकी तरह, पदार्य और शक्तियां विविध रूपमें पाये जाते हैं, जैसे ताप [भाताप ], विद्युत् (वध), प्रकाश (उद्योत) भादि । इन विविध रूपों (दस) का जैसा वर्णन जैनमतमें हैं वैसेही विज्ञान अभी उस कोटि तक नही पहुचा है | शरीर पचन, मन, आदिके लिये विज्ञान पदार्थ ( Matter ) मानवाही है, । श्वासोच्छवास स्पष्टही भौतिक है...
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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