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________________ ( ग ) अपुनर्भव हो जाते हैं। प्रधान शिष्य गौतम को महावीर के बिसह में अत्यन्त दुःख होता है । अन्त में विशुद्ध अध्यवसायों पर पड़ते हुए केवलज्ञान को प्राप्त करते हैं। कलश में लेखक ने छह कल्याणकों को परम मगलकारी दिखाते हुए अपनी गुरुपरम्परा का, संधत् का और स्थान का Seोस किया है। - इस प्रकार देखा जाय तो इन छः पूजाओं में प्रम भगवान महावीर का सक्षेप में समग्र जीवन-चरित्र ही गया है। प्रकाशन का इतिहास गत वर्ष मेरा चातुर्मास बम्बई पायधुनी स्थित महावीर स्वामी के देरासर मेथा। उस समय भायखला निवासी माई थपरतलाल शिवलाल शाह ने छह कल्याणक की पूजा बनाने को अनेकों बार आग्रह किया था, लेकिन संयोग घश उनकी इच्छा की पूर्ति । उस समय में नहीं कर सका था। इस वर्ष भी अपने कई मित्रों एव सहयोगियों का श्रीमह रहा कि रचना की ही जाय । उसी प्रेम पूर्ण आग्रह के वशीभूत होकर यह पूजा बनाई गई है। इस पूजों की भाषा अत्यन्त ही सरल रखी गई है, जिससे सामान्य पाठक भी इस-पूजा का भाव हृदयगम कर सके। मेर सुस्नेही उपाध्याय श्री कवीन्द्रसागरजी महाराज ने इसका संशोधन कर जो उदारता दिखलाई है उसके लिये में उनका अत्यन्त ही कृतज्ञ हूँ। - गेय रूप मे मेरी यह प्रथम कृति ही होने के कारण निसंदेह इसमें अनेकों त्रुटियाँ होंगी, उन्हें विजण सुधारने का प्रयास करेंगे। २२-३-५६ - लेखक कोटा (राजस्थान)
SR No.010529
Book TitleMahavira Shat Kalyanaka Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherVinaysagar
Publication Year1956
Total Pages33
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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