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________________ [६ ] दुःखादि प्राप्त होते हैं उनके सुख दुःख उनके पूर्वकी योग्य भयवा अयोग्य कृतिसे ही मिलता है। सुख दुःखके कारण उनके कर्मके सिवाय दूसरे कुछ नहीं होते। कृतनाश और अकृत आगमका अंधा नियम कर्म फलदात्री सत्ताके यहां नहीं चल सकता क्योंकि वहां अंधेर नहीं है और यह अनादि सिद्ध नियमका उल्लंघन करनेको देव, दानव, मनुष्य अथवा ईश्वर भी समर्थ नहीं है ! कभी हमें निर्दोषको दुःख और सदोषको सुख मिलता मालूम होता है परन्तु यह मात्र अपने अल्पज्ञताका ही परिणामहै। निसको जबर शुभाशुभ परिणाम मिले हैं उसके लिये वे लायक थे तब ही मिले हैं। विना कसूरके न्यायाधीशके हाथसे फासी देनेके कईएक उदाहरण बनते हैं। यह सामान्य कहावत है कि वह मनुष्य फाँसीके लिये अयोग्य था परन्तु वह मारा गया यह नहीं होसकता । कौनसा कर्मफल कर और किस तरह मिलता है उसको हमारे चर्मचक्षु नहीं देख सकते हैं। इसलिये हम अकेले होकर बोल उठते हैं कि वह वेचारा निर्दोष था परन्तु मारा गया। यह हमारे स्मृतिमें होना चाहिये कि इस विश्व व्यवस्था, एक तिल मात्र मी अंधेर नहीं निम सकता है। प्रत्येक मनुष्यको जो सुन अथवा दुःख मिलता है उसके लिये वह योग्य ही है इसलिये वह उसको मिला ही करता है। सृष्टिके आदिसे आज तक एक भी मामला ऐसा नहीं हुआ कि जो कारण बिदून हुआ हो अथवा होने योग्य न हो और हुआ हो । फांसी पर लटका जानेवाला, तोपके मुँहसे उड़नेवाला, तलवारसे कटकर मरनेवाला, नलके बहावमें मरनेवाला और अग्निमें मरनेवाले आदि इन सबकी
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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