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________________ [६ ] । उनमें से एक संगम नामक दुष्टं देव प्रभुकी प्रशंसाको नहीं सुन कर और कहने लगा कि एक निर्बल मनुष्य इन देवकी इतनी प्रशंसाका 'पात्र कैसे हो सकता है! यह बात मुझसे सुंनी नहीं जातीं। प्रभुके अंतस्थं प्रभावके स्वरूपको बाहिरी दृष्टिवाला संगम' नहीं समझ सकता था । अतएव वह कहने लगा-अतुल और अमित पराक्रम युक्त हैं और हमें जन्मसे प्राप्त सिद्धियोंके आगे एक शुद्र मनुष्पकी क्या गिनती है ? यह विचार कर वह गर्नता हुआ प्रमुके पास आया। संगमने प्रमुको छ: महीने पर्यन्त जो असह्य कष्ट दिया था उसका वर्णनं पढ़ते २ हमारा हृदय कोप उठता हैं। अनेक तरहके महांतीव्र और विषय युक्तं जंतुं पैदा कर उनके द्वारा प्रमुको कष्ट देनेमें कुछ भी कमी नहीं रखी परन्तु उस निष्कार जगत् बंधुके आखोंमें जरा भी क्रोधकी ललाई नहीं दिखाई दी। जो प्रभु एक संकल्पके स्मरण मात्रसें सारे विश्वको विखेरनेको समर्थ थे वे ही प्रभु संगमकी धृष्टताको आत्मामें कुछ भी खेद किये विना अव्यय भावसे सहन करते थे, कारण . कि सहना :यही. उच्चगामी आत्माका महाव्रत होता है। कर्मफलदात्री.. सत्ताके महानियपकी गतिमेंसें छूटनेका प्रयत्न करना व्यर्थ है। इस विषयकों प्रभु अच्छीतरहसे जानते थे। इस विश्वमें किसी भी तरहका जो कष्ट होता है उसके कारण आत्मा पहिले से ही गतिमें रख देता है। विना कारण कार्य नहीं हो सकता। संगमने प्रमुको इतना दारुण घोर परिषह दिया। यह क्या निष्कारण थां! नहीं! नहीं था। प्रमुनें पूर्वमें इसके लिये कुछ अवश्य किया होगा। एक क्षुद्र जंतुको अथवा उस महान महान् कोटिके मनुष्य अथवा देंव पर्यन्तं जिसकों सुखं
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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