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________________ (३१) उनके लिये यह अमूल्य शिक्षणसे भरपूर है। जब तक प्रभुको ) कैवल्य प्राप्त नहीं हुआ था उस समय तक उन्होंने किसीको उपदेश नहीं दिया था इतना ही नहीं जहांतक हो सका अपने प्रयत्न द्वारा उसका परिहार किया था। जिनके अंदर कैवल्यके सिवाय और चार प्रकारके ज्ञान विद्यमान थे उन महावीर प्रभुने दीक्षा लेते ही शीघ्र उपदेश प्रवृत्ति शुरू कर दी होती और वे उसमें न्यूनाधिक अंशमें सफलताको भीप्राप्त करते । परन्तु ऐसा न करते पहले उन्होंने खुदका कल्याण करना योग्य सनझा और इस सर्वो स्ट हितको साधने पर्यन्त मौन हीमें रहे। ये किस हेतु विशेपके लिये था इसको समझनेका हम सबको प्रयत्न करना चाहिये। आत्मा जितने अंशमें पूर्णताको प्राप्त हो जाता है अथवा परमपदके नजदीक होता है उतने ही अंशमें दूसरे मनुष्योंका हित करनेको समर्थ होता है। जिसके जीवको अभी सेंकड़ों तरहसे सुधा रना बाकी है जब वह दूसरेको सुधारनेका झंडा लेकर मैदानमें कूद पड़ता है और इस तरहसे झंडा लेकर फिरनेसे इस विश्वपर खराब असर होती है। जहां तक सुधारकका चरित्र दोषयुक्त ओर विकल होता है वहां तक जो प्रवृति दूसरोंको उपदेश देनेमें लगाई जाती है इससे स्व और पर दोनोंके हितका विनाश होता है। दोप युक्त पानीसे भीगे हुए अन्तःकरणके दागको निकालनेका कर्तव्य छोड़ देना चाहिये और अज्ञानकी मेशको निकालनेका प्रयत्न करना ठीक ऐसा ही है जैसा कि एक कोयलेको दूसरे कोयलेके साथ घिस कर उसके द्वारा दूसरे कोयलेको उज्ज्वल करनेके उद्योग समान है। मनुष्यका मुख्य फर्जहै कि उसका लक्ष कमरकसकर अपने सम्पूर्ण हित
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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