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________________ [५] मान कराने के लिये तथा यह दिखाने के लिये था कि प्रत्येक आत्मामें ऐमी ही अलौकिक शक्ति है । सामान्य जीवोंको स्यूलोद्भवित शक्तिके सिवाय अन्य शतिमें श्रद्धा नहीं होती है, और इसलिये प्रसंगपर महात्माओंको आत्मशक्तिवन प्रभाव दिखाना पड़ता है और इसके अनेक उदाहरण मी मौजूद हैं। पौराणिक कथा प्रसिद्ध है कि महात्मा कृष्णने अपनी एक अंगुली पर गोवर्द्धन पर्वतको उठा लिया था। आत्माकी शक्तिके अनंतपनेमें जिसको श्रद्धा है वे ऐसे व्यतिकरोंको कमी असंभव नहीं मानेंगे। इस कालमें भी आत्मशक्तिके अनेक प्रभावोत्पादक घटनाएँ घटित. हुई हैं जिनसे पाठक परिचित होंगे। पुण्यशाली आत्माके प्रादुर्भूत होने पर सर्वत्र आनंद मङ्गल ही दिखाई देने लगता है। उसी प्रकार प्रमुके जन्मके बाद सिद्धार्थकी सम्वृद्धि में अमाधारण वृद्धि होने लगी। प्रभुके पुण्य प्रभावसे नगरमें, देशमें, और हर घरमें प्रसन्नताका प्रचार हो गया। प्रत्येक मनुष्यके हृदयसे आनंदके फुन्यारे छूटने लगे। प्रमुके पुनीत पदाविन्दसे इस प्रकार सर्वत्र सुख समृद्धिकी वृद्धि हुई इसलिये उनका वर्द्धमान नाम रक्खा गया। भगवानकी वाल्य लीला भी बहुत ही बोधदायक थी। उनकी आत्माका जो प्रभाव भाविमें अनेक प्राणियोंको कल्याण करनेके लिये निर्मित हुआ था वह प्रभाव उनके क्रीड़ा कालमें भी दिखाई देता था। मातापिताके स्नेहसुवासे पालित पोषित हो कर क्रमशः ! प्रमुने यौवनावस्था प्राप्त की। प्रमुके बाल्य कालसे तबतक की कई चमत्कारिक घटनाओंके द्वारा मातापिताको नो सुलभ प्रेम
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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