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________________ मत्त होजाना भी उसके अयोग्य है । घमंडी मनुष्य कभी उन्नतिक मार्गमें आगे नहीं बढ़ सकता। क्योंकि वह अपनी वर्तमान स्थितिमें ही संतुष्ट रहता है और अपनेसे निम्न स्थितिवालोंके प्रति वह द्वेष और घृणाके भाव पोपण करता है। इसका कारण यह है कि वह इन्हीं निम्न स्थितियोंमें स्वयम्की कल्पनाकर बड़े दुःख और असंमजसका अनुभव करता है। इस प्रकार अहंकारी मनुष्य तिल मात्र भी आगे नहीं बढ़ता, इतना ही नहीं परन्तु कर्मकी जबर्दस्त सत्ता उसको अपने असली स्थानसे ढकेलकर उसो तिरस्कृत्य स्थितिमें ला पटकती है। महावीर प्रभुके विषयमें भी ऐसा ही हुआ था। " तीर्थङ्कर " के समान अत्यन्त प्रभावशाली नाम कर्मकी प्रकृतिका बंध करने पर भी अभिमानका फल कर्म फलदानी सत्ता उन्हें दिये बिना नहीं रही इसहीस पहिले उनका एक दरिद्री. कुटुम्बकी ब्राह्मणीके गर्भ में चवन हुआ था। अहंकार बड़ेसे बड़े महात्माओंको कैसे फल चखाता है उसका यह एक ज्वलंत तथा सुवोधमय उदाहरण है। प्रमुका जन्म हुआ। जन्म कल्याणकका उत्सव मनानेके लिये सौधर्मेन्द्र प्रमुको मेरु पर्वत पर लेगया। अन्य सठ इन्द्र भी उनको स्नान करानेके लिये वहां उपस्थित हुए थे। जिस समय तीर्थक सुगंधित जलसे प्रभुका अभिषेक करनेकी तैयारी हो रही थी। उस समय सौधर्मेन्द्रको शंका हुई कि प्रभुका बालशरीर जलकी इन विपुल धाराओंके प्रभावको कैसे सह सकेगा। अन्यायाध इन्द्रिय सुखका भोक्ता इन्द्र उस समय शक्तिके वास्तविक प्रभवस्थानको भूल गया । उसको उस समय केवल यही
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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