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________________ * श्री लॅबेचू समाजका इतिहास * २७७ प्रवेश कर रास्ता दिखाने लगा तब वलदेवजी समझ गये कि यह कोई देव सहायक है जमुना में प्रवेश करते ही जमुना ( पांझ ) घुटने तक रह गई तब बलदेव कृष्णको लिये वृन्दाबन के घाट से उतर गोकुल पहुंचे एक देवी के मन्दिर में देवीके पीछे भाग में लंकर बैठ गये। उसी समय नन्द ग्वाल की स्त्री यशोदा के एक लड़की हुई थी वह उसी देवी की उपासक थी वह लड़की लेकर देवी को उलाहना देने आई कि मैंने तो तुम से पुत्र मांगा था तुमने यह लड़की क्यों दी तो अवसर पाकर बलदेवने पीछे से जवाब दिया कि यह पुत्र ल कन्या हमको दे तब उसने कन्या दे दी और कृष्णको लेकर बड़ी प्रसन्न हुई और उसको समझाया कि यह वात गोप्य रखना किसी से कहना नहीं ये घरका ठिकाना पूछ बलदेव कन्या लंकर चले आये और कन्या देवकी को ही सौंप दी सवेरे ही प्रसूति की बात सुनकर कंस आया और देखा कि कन्या हुई तो उसे मारा तो नहीं किन्तु इस शंका से कि कहीं इसका पति ही हमारा मारने वाला न हो जाय नाक को अंगूठा से चपटी कर दी हालका बालक मिट्टीके पिण्ड
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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