SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५० * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * हरनजे करन परकाजके ॥ कीरति करन करतूतिन के जेतवार करें लऊराइ शाखि शाखि सिरताजके चक्रवर्ती चोधरी प्रसिद्ध चारो चक्रनिमें साहसी सपूत दिप पृतमेघराजके ।३५।। सत्रहसो संवत् अठासीशिति माघछठि शुक्रशुभवारको धर्म धुरालीनी है । दिशिविदिशानमें पठाई पत्री चारोचक्र धरि जिनभक्ति दया धर्म रसभीनी है। आई गोठे उमडि घटासी भीर लाखनि ही कहैं लऊ तिन्हें मिजमानी जोर दीनी है। मक्खन मलनन्द शाह गोविन्द जुराइ तखत पिरोजाबाद पूजा भली कीनी है ॥३६॥ कवित्त चन्द्रोरिया गोत्रको अमृत्त राय नन्दरामसिंध उदैराज सुचारो चक्रनिर्भर रस है । कुलके कलश कुलदीपशाह जयकृष्ण सभा बीच कञ्चन के झरनेवरस है। दिलके दिलेल मोतीलाल दानी इच्छाराम रोष नशिजात जिन्हें देखत दरस है। कहत भमानी दयादान और करनीको पूतनाती पंती खेमकरनके सरस हैं।३७। कवित्त जैतपुरिया रपरियनको जीते जोर जज्ञ सनमान वई दान जीते जीते बड़े व्याह नित आनदवधाये हैं। जीते सुखसंपत सपूतई मुजशजीत
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy