________________
* श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
२४६
छप्पय उदित अवनि उदै राज कित्ति कीनीजहान पर, सोलह से पर साठि वसन्त रितु वर्षे अर में झर । भोग बंश हमीर कुल सुजश लक्ष्मो सब लीनो, करी प्रतिष्ठा धन विलास जज्ञ जग ऊपर कीनो । जदुवंश तिलक मुरली कहइ कहि भूषण नर वहि नृपति, गजराज वाजि साजतु रहइ सुसंघइ नृपति हतिकंत पति ॥ ३२॥
दोहा कवित्त चोधरी गोत्रको जदुवंशी संशय हरन मुख संपती निवास । तखत पिरोजाबादमें चोधरी भमानीदास ॥३३॥
दिन दानी उजारे विपत्ति विदारे तेज तपै । हे थप्पिन उथपइ उथपथपन जाको जशचहुं जगत जपै । जिन सुनिकरनी बहुविधिवरनी सब शत्रुनको उरजु कपैं। सो तखत फिरोजाबाद लऊ चोधरीभमानीदास दिपै ॥३४॥
(सवैया ३१ सा) | प्रथम ही लाजके जहाज मकरंद वीरवल दयादान धर्म औ समाज के ॥ कुलके कलश कुलदीप दानी पूरनमल दारिद