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________________ अभिषेक पाठ दोहा जय जय भगवन्ते सदा, मंगल मूल महान । वीतराग सर्वज्ञ प्रभु, नमों जोरि जुगपान ।। छन्द (अडिल्ल और गीत) श्रीजिन जग में ऐसो, को बुधवन्त जू, जो तुम गुण वरननि करि पावै अन्त जू। इन्द्रादिक सुर चार ज्ञानधारी मनी, कहि न सके तुम गुणगण हे विभुवनधनी ॥ अनुपम अमित तुम गुणनि वारिधि, ज्यों अलांकाकाश है । किमि धरै हम उर कोप में सो अथकगुणमणिराश है।। पै जिन प्रयोजन सिद्धि की तुम नाम में ही शक्ति है। यह चित्त में मरधान यात नाम ही भक्ति है ॥१॥ ज्ञानावरणी दर्शनआवरणी भने । कर्म मोहनी अन्तराय चारों भने । लोकालोक विलोक्यो केवलज्ञान में । इन्द्रादिक के मुकुट नये मुरथान में ।। नव इन्द्र जान्यो अवधितं उटि मुरन युन वंदन भयो । तुम पुन्य को प्रेरयो हरि मुदित धनपतिसौं चयो । अव वैगि जाय रची समवसृति सफल सुरपद को कगे। साक्षात श्री अरहंत के दर्शन करी कल्मप हरी ॥२॥
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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