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________________ ११५ घेवरादि बावरादि मिष्ट सर्पिमें सनें । आप चर्ण अर्चतें क्षुधादि रोगको हनें || पार्श्व ० ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय ! गर्भजन्मतपज्ञाननिर्वाणपंचकल्याणकप्राप्ताय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । लाय रत्न-दीपको सनेह - पूरके भरूं । बातिका कपूर वार मोह - ध्वांतको हरू || पार्श्व ० ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय ! गर्भजन्मतपज्ञान निर्वाणपंत्रकल्याणकप्राप्ताय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । धूप गंध लेयके सु अग्नि संग जारिये । & तास धूमके सु संग कर्म अष्ट वारिये || पार्श्व ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय ! गर्भजन्मतपज्ञाननिर्वाणपंचकल्याणप्राप्ताय धूपं निर्वपामीति स्वाहा । खारकादि चिर्भटादि रत्न-थारमें भरूं । हर्ष धार के जजूं सुमोक्ष सौख्यको वरूं || पार्श्व ० ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय ! गर्भजन्मतपज्ञान निर्वाणपंचकल्याणकप्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा | नीर गंध अक्षतं सुपुष्प चारु लीजिये । दीप धूप श्रीफलादि अर्धतें जजीजिये || पार्श्व ० ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय ! गर्भजन्मतपज्ञान निर्वाणपंचकल्याणकप्राप्ताय अर्धं निर्वपामीति स्वाहा |
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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