SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११४ ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनायजिनेंद्र ! अत्र अवतर अवतर सवौषट् । ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेंद्र ! अन तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं श्री पाश्वनाथजिनेंद्र ! अब मम सन्निहितो भव भव वपट चामर छंद क्षीर सोम के समान अंबु-सार लाइये, हेम-पान धारके सु आपको चढ़ाइये । पार्श्वनाथदेव सेव आपकी करूं सदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा ॥ ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भजन्मतपज्ञाननिर्वाणपंचकल्याणकप्राप्ताय जलं निर्वपामीति स्वाहा। चंदनादि केसरादि स्वच्छ गंध लीजिये। आप चर्न चर्च मोह-तापको हनीजिये ॥पार्श्व० ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाजिनेन्द्राय ! गर्भजन्मतपज्ञाननिर्वाणपंचकल्याणकप्राप्ताय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। फेन चंदके समान अक्षतं मँगायके। पादके समीप सार पूजको रचायके पार्श्व० ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय ! गर्भजन्मतपज्ञाननिर्वाणपंचकल्याणकप्राप्ताय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। केवड़ा गुलाब और केतकी चुनाइये।। धार चर्णके समीप काम को नशाइये ॥पार्श्व० ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय ! गर्भजन्मतपज्ञाननिर्वाणपंचकल्याणकप्राप्ताय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy