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________________ प्रयल करेंगी। स्त्रियों के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षा तो मातृत्व की है। जितनी योग्यता से वे बच्चों का पालन-पोपण करेंगी, राष्ट्र का उतना ही भला होगा। वालकों के स्वभाव का मनोवैज्ञानिक अध्ययन होना संतान के हृदय में उच्च संस्कार डालने में विशेष उपयोगी सिद्ध हो सकता है। प्रत्येक बालक की प्रारम्भ से ही भिन्न-भिन्न प्रकार की स्वाभाविक रुचि होती है। कोई स्वभाव से ही गम्भीर और शांत होते हैं, कोई चंचल और कोई बुद्धिहीन और मूर्ख होते हैं। कइयों की रुचि खेल-कूद की ओर ही होती है, कोई संगीत का प्रेमी होता है तो कोई अध्ययनशील । किसी को दूकान की गद्दी पर बैठ कर सामान तोलने में ही प्रसन्नता होती है तो किसी को मन्दिर में जाकर ईश्वर के भजन में ही आत्मसन्तोष प्राप्त होता है। अगर ऐसी ही स्वाभाविक रुचि के अनुसार बालकों की शिक्षा का प्रबन्ध किया जाय तो वे उसमें बहुत सफल और प्रवीण हो सकते हैं। स्त्रियों के लिए ऐसी ही मनोवैज्ञानिक शिक्षा उपयोगी है, जिसके द्वारा वे वालकों को समझ सकें उनके मस्तिष्क की गतिविधि को पहचानने में ही उनके जीवन की सफलता निर्भर रहती है। जैसा व्यवहार करना बचपन में बालकों को सिखाया जायगा वैसा ही वे जीवन भर करते रहेंगे। वे प्रत्येक बात में माता-पिता और कुटुम्ब के वातावरण का अनुकरण करते हैं। अगर माता स्वभाव से योग्य, कर्तव्यनिष्ठ, सुसंस्कृत और सभ्य है तो कोई वजह नहीं कि पुत्र अयोग्य हो । पुत्रों को सुधारने के लिए माताओं को अपने आचरण और व्यवहार को सुधारना चाहिए। स्त्रियों को इसी प्रकार की शिक्षा देना उपयुक्त है, जिससे वे रांतान के प्रति अपना उत्तरदायित्व समझें और अपना व्यवहार सुधारें। झूठे ममत्ववश बालकों को जिद्दी और हठी बना देना, उनका जीवन बिगाड़ने के समान है। ___मातृत्व में ही स्त्रियों पर सबसे बड़े उत्तरदायित्व का भार रहता है, अतः उसी से सम्बन्धित शिक्षा भी उनके लिए उपयुक्त है। इसका यह तात्पर्य नहीं कि और किसी प्रकार की शिक्षा की उनको आवश्यकता ही नहीं। महिलाओं के लिए भी शिक्षा का बहुत-सा क्षेत्र रिक्त है। घर के आय-व्यय का पूर्ण हिसाव रखना गृहिणी का ही कर्तव्य है। कितना रुपया किस वस्तु में खर्च किया जाना चाहिए, इसका अनुमान लगाना चाहिए। धन की प्रत्येक इकाई को कहां-कहां खर्च किए जाने पर अधिक से अधिक सन्तोष प्राप्त किया जा सकता है, यह स्त्री ही सोच सकती है। यचों को चोट लग जाने पर, जल जाने पर, गर्मी सर्दी हो जाने पर, साधारण बुखार में कौनसी औषधि का प्रयोग किया जाना चाहिए, इसका साधारण ज्ञान होना अत्यावश्यक है। घर की प्रत्येक वस्तु को किस प्रकार रखा जाय कि किसी को भी नुकसान न पहुँचे, यह सोचना गृहिणी का कार्य है। घर को स्वच्छ और आकर्षक बनाए रखने में ही गृहिणी की कुशलता आंकी जाती है। घर की स्वच्छता और सुन्दरता भी वातावरण की तरह मनुष्य के मस्तिष्क पर प्रभाव डालने वाली होती है। चतुर गृहिणी अपनी योग्यता से घर को स्वर्ग बना सकती हैं और पूर्ण खियां उसी को नरक । यद्यपि अकेली शिक्षा ही पर्याप्त नहीं होती, उसके साथ-साथ कोमलता, विनय और भारलता आदि स्वाभाविक गुण भी महिलाओं में होने चाहिए पर शिक्षा का महत्त्व जीवन में कभी कम नहीं हो सकता। जितना अधिक महिलोचित शिक्षा का प्रचार होगा, गृहस्थी की व्यवस्था उतनी ही उत्तम प्रकार से होगी, कामाको को शिक्षा उचित रूप से होगी और कौटुम्विक जीवन सुखी होगा। कुछ लोगों को धारणा है कि स्त्रियों का कार्य घर में चूल्हा चक्की ही है, अतः उनको पढ़ाने का लिखाने यता नहीं तथा कई लोग प्रत्येक स्त्री को एम.ए. कराकर पुरुषों के समान ही नौकरी करने की पक्षपाती है। मानो या अयुक्त नहीं। यह कथन अत्यन्त निराधार है कि सफल गृहिणी को शिक्षा की आवश्यकता नहीं। कुछ प रिक्षा के उपरान्त उच गृहस्थ-शान का अध्ययन करना प्रत्येक स्त्री के लिए आवश्यक है। हर एक काय
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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