SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्षेत्र में आगे बढ़ती जा रही हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि सुशिक्षिता स्त्रियां भी किसी मानसिक कमजोरी के कारण कोई कार्य करने में असमर्थ रही हों। भारतवर्ष में और अन्य देशों में, महत्त्वपूर्ण कार्यों में स्त्रियों के आगे न आने का कारण उनको अवसर न मिलना ही है। अभी स्त्री शिक्षा की नींव डाली ही गई है, धीरे-धीरे निरन्तर प्रगति होते-होते निश्चित रूप से महिलाएं अपने को पुरुषों के बरावर सिद्ध कर देगी। एकदम नव-शिक्षितिओं को पुरानी सभी विचारधाराओं का पूर्ण रूप से अध्ययन कर लेना कष्टसाध्य भी तो होता है। इस प्रकार यह निश्चित है कि शारीरिक और मानसिक दृष्टि से स्त्री व पुरुप दोनों वरावर होते हैं। पति को ऐसी अवस्था में पली को दासी बना कर रखना उसके प्रति अन्याय होगा। स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न उठता है कि स्त्री और पुरुष की शिक्षा में भिन्नता होनी चाहिए अथवा नहीं? ५-शिक्षा की रूपरेखा यह निश्चित है कि पति चाहे कितना ही धन अर्जित करता हो अगर उस पैसे का उचित उपयोग न किया जाय तो वहुत हानि होने की सम्भावना है। अगर घर की व्यवस्था उपयुक्त नहीं, स्वच्छता की और कोई लक्ष्य नहीं उचित सन्तानपोपण की व्यवस्था नहीं तथा खान-पान की सामग्री का इन्तजाम नहीं तो कौटुम्विक जीवन कभी सफल और सुखी नहीं रह सकता। अगर गृहिणी शिक्षिता होकर आफिस में पतिदेव की तरह क्लर्की करे और उनकी सन्तान सदैव दुखी रहे तथा सभी प्रकार की अव्यवस्था हो तो क्या वह दाम्पत्य जीवन सुखी होगा? एक सफल गृहिणी होना ही स्त्री का कर्तव्य है। पति-पत्नी दोनों ही अगर भिन्न-भिन्न क्षेत्र में अपना-अपना कर्तव्य अच्छी तरह पूरा करते रहें, तभी गृहजीवन सुखी हो सकता है। पति का आफिस का कार्य उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना स्त्री का भोजन बनाना। किसी का भी कार्य एक दूसरे से हीन नहीं। स्त्रियों को सुशिक्षित होकर अपना गृहस्थी को स्वर्ग बनाने और अपनी सन्तान को गुणवान् बनाकर सत्संस्कारी करने का उपक्रम करना चाहिए। स्त्रियों की शिक्षा निश्चित रूप से पुरुषों से भिन्न प्रकार की होनी चाहिए। साधारण रूप से सभी शिक्षित स्त्रियों को सफल गृहिणी वनने में सीता सावित्री का आदर्श अपनाना चाहिए। किन्हीं विशेष परिस्थितियों में कोई स्त्री अर्धप्राप्ति में भी पति का हाथ बंटा सकती है, अपनी सुविधा और योग्यता के अनुसार । पर स्त्रियों के विना गृहस्थी सुव्यवस्थित नहीं रह सकती और उन्हें इस ओर सुशिक्षिता होकर उपेक्षा कदापि नहीं करनी चाहिए। आजकल स्त्रियों को धर्म, विज्ञान, गृहकार्य, रन्धन, सीना, सन्तान-पोषण और स्वच्छता आदि की शिक्षा दी जानी चाहिए। अश्लील नाटकों, उपन्यासों, सिनेमा आदि में व्यर्थ समय नष्ट न किया जाय तो अच्छा है। मनोरंजन के लिए चित्रकला, संगीत आदि की शिक्षा देना उपयुक्त है। प्राचीन काल में बालिकाओं को अन्य शिक्षाओं के साथ-साध संगीत आदि का भी अभ्यास कराया जाता था। नत्व भी एक सन्दर कला है। नत्य और संगीत शिक्षा मनारजन के साध-साध स्वास्थ्य लाभ की दष्टि से भी अच्छी है। इन बातों से दाम्पत्य जीवन और भी सुखमय, आकर्षक तथा मनोरञ्जक बन जाता है। परस्पर पति-पली में प्रेम भी बढ़ता है। कला के क्षेत्र में वे उन्नति करेंगी ___ और बहुत से आदर्श कलाकर पैदा होंगे। शिक्षा के प्रति प्रेम होने से आदर्श नारी चरित्र की ओर अग्रसर होने का वे प्रवल करेंगी। सांता, सविना दमयन्ती, मीरां वाई आदि के जीवन चरित्र को समझकर अपने जीवन को उन्हीं के अनुरूप बनाने का व
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy