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________________ शिक्षा मनुष्य के रहन-सहन में अपूर्व परिवर्तन कर देती है। इसके बिना हम वहुत-सी वस्तुओं से विल्कुल अज्ञात रह सकते हैं जो हमारे जीवन में सफलता प्रदान करने में सहायक हो सकती है। किसी भी क्षेत्र में अशिक्षा सफल नहीं हो सकती। दूसरे शब्दों में अशिक्षित कुछ भी नहीं कर सकता। किसी भी विषय में निपुणता और दक्षता प्राप्त करने के लिए शिक्षा अपेक्षित है। एक डाक्टर कभी सफल नहीं हो सकता, जब तक वह पूर्ण रूप से शरीर विज्ञान और रसायनशास्त्र का गहरा अध्ययन न कर ले। मनुष्य सफल व्यापारी भी तव तक नहीं बन सकता, जव तक वह अर्थशास्त्र, भूगोल आदि का अच्छा अध्ययन नहीं कर लेता। कृषि विद्या, सिलाई, बुनाई आदि की भी क्रियात्मक शिक्षा के अभाव में अपूर्णता ही है। इस प्रकार सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि शिक्षा के अभाव में समस्त जीवन ही अपूर्ण है। किसी भी एक क्षेत्र में निपुणता प्राप्त करके ही जीवन निर्माण किया जाता है। किसी भी देश की अवनति के कारणों का यदि पता लगाया जाय तो स्पष्ट प्रतीत होगा कि शिक्षा का अभाव ही इसका मुख्य कारण है। ___ शिक्षा के अभाव में कई बुराइयां स्वतः घर कर लेती हैं। अयोग्यता के कारण एक प्रकार की अज्ञानता फैल जाती है, जिसके कारण गृह-कलह, अन्धविश्वास, फूट आदि समाज में फैलते हैं। शिक्षा के अभाव में किसी भी वस्तु को तर्क और योग्यता की कसौटी पर कस कर लोग नहीं देख सकते। परम्परा से चली आती हुई __ परिपाटी तथा रीति रिवाजों को नहीं छोड़ना चाहते। इतना ही नहीं बल्कि समय की गति के अनुसार उससे तनिक-सा भी परिवर्तन नहीं करना चाहते, चाहे वह खुद के लिए व समाज के लिए कितनी ही हानिप्रद क्यों न हो! शिक्षा से अभिप्राय यहां केवल विशेष रूप में स्त्री या पुरुष की ही शिक्षा से नहीं, लेकिन समान रूप से ___ दोनों की शिक्षा से है। स्त्री और पुरुष समाज के दो महत्त्वपूर्ण अंग हैं। किसी एक को विशेष महत्त्व देकर और दूसरे की पूर्ण रूप से अवहेलना कर समाज की उन्नति नहीं की जा सकती। उन्नति के लिए यह पत्नावश्यक है कि स्त्री और पुरुष समाज के दोनों ही अंग शिक्षा प्राप्त करें। २-स्त्रीशिक्षा वहुत समय से स्त्रियों का कार्यक्षेत्र घर के भीतर ही समझा जाता है। समाज ने इन संस्कभी दृटिमात __ ही नहीं किया कि घर की दुनिया के बाहर भी उनका कुछ कार्य हो सकता है। भोजन बनुन, नई सना, पति की आज्ञा का पालन कर उसे सदैव सखी और सन्तप्ट रखने का प्रयल करना ही उसके जनक उद्देश्य रहा है। इन कार्यों के लिए भी शिक्षा की उपयोगिता हो सकती है, इसका कभी विचार भी नहीं किया दालिकाओं को शिक्षा देने का प्रयल किया गया तो वह भी उतना ही जिससे पत्र पढ़ना और लिखनऊ. स्त्र और पति कता मनोरंजन किया जा सके। प्राचीन योरप में ऐसी ही मनोवृत्तियां लोगों में फैली हुई दिय कस्यान वहां भी बहुत संकुचित था। अधिक शिक्षा प्राप्त करना और बाहरी दुनियां से सम्पर्क दन नायक समझा जाता था! सीना-पिरोना, चर्खा कातना, भोजन बनाना आदि जानना ही उनके लिए कर कुक भिक का प्रयल बहुत वाद में किया गया था और उसमें कुछ उन्नति हो जाने पर भी, त्रि के लिए शिक्षा उपयोगी हो त है, इसका किसी ने विचार तक नहीं किया। अनाणी किं काही, किंवा नाही सेय-पावगं?
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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