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________________ धर्मनायक की अद्वितीय भूमिका मुरारी लाल तिवारी महामंत्र नवकार के प्रथम पद में अरिहन्त प्रभु का पुण्य स्मरण है। दूसरा पद सिद्ध भगवान को श्रद्धा से स्मरण कराता है और तीसरा पद ‘णमो आयरियाणं' आचार्य भगवान् जो चतुर्विध संघ को अपने सम्यक्ज्ञान, सम्यक् दर्शन तथा सम्यक् चारित्र से संचालित करते हैं, के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति है। आचार्य यह सम्बोधन जैन साधना में बड़े महत्त्व का पद है। जैन शास्त्रों में विशिष्ट आत्मा, जो स्वयं पांच प्रकार के आचार का पालन करते हैं और दूसरों से कराते हैं, वही आचार्य है। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इस साधना के प्रमुख अंग हैं। आचार्यप्रभु क्योंकि साधु, साध्वी, श्रावक तथा श्राविका इस चतुर्विध संघ की महान् नियोजक शक्ति हैं इसलिए वे जिन तो नहीं है, परन्तु जिन के प्रतिनिधि हैं। श्री जवाहराचार्य ने तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित निर्ग्रन्थ धर्म को अंगीकार कर, अनेकान्त के तात्विक विवेचन को हृदय में धारण कर, जैन शास्त्रों के अनुसार उनकी विवेचना की। वे प्राणि-मात्र के प्रति मैत्रीभाव के उद्गाता हैं। वे जैन शास्त्रों के सफल मीमांसक रहे हैं। उन्होंने शास्त्रोक्त आचार के अनुरूप दिव्य जीवन जिया। वे सम्यक् ज्ञान युक्त श्रेष्ठ आत्मधर्म के धारक आचार्य रहे हैं। जैनाकाश के गगन मंडल में जवाहर वह सूर्य-मणि है, जो जीवन के अन्धेरों को दूर कर उसे आलोक प्रदान करता है। वे जैन जगत् तक सीमित विभूति नहीं थे क्योंकि ऋषभ से लेकर महावीर तक की परम्परा जैन-जगत तक सीमित परम्परा नहीं है। वह तो जीवेतर परम्परा है—समस्त प्राणि-मात्र का कल्याण दया, करूणा के साथ जीवों के प्रति शुचिता भात। आत्मवत आचरेत की भावना पुराणों से शास्त्रों से निकलकर जव आगम-ग्रंथों में परिष्कृत हुई तव यह उसी करुणा का विस्तार था। करुणा जब किसी जाति, सम्प्रदाय, क्षेत्र, काल, शरीर के भेद को पार कर जाती है, र महावीर की करुणा बनती है। और इस करुणा के सतत् प्रवाह को जो आचार्य आत्मा में उतारकर उसका शिमात्र पर अभिसिंचन करता है, तब कहीं वह आचार्यश्री जवाहराचार्य जैसा सर्वप्रिय आचार्य बनता है। अपने इसी वैशिष्ट्य के कारण वे, भारतीय युग धर्म प्रस्तुतिकर्ता जैन आचार्यों में विशिष्ट मार्ग प्रदर्शक के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। १३४
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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