SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रान्तिदर्शी आचार्य . लच्छीराम पुगलिया। युगपुरुष वह होता है, जो अपने युग को नया संदेश सुनाता है। उसके विचार में युग का विचार मुखर होता है। उसकी वाणी में युग बोलता है, उसकी क्रिया-शक्ति से युग को नयी चेतना, नयी स्फूर्ति और नई प्रेरणा मिलती है। वह अपने युग की जनता को सही दिशा की ओर प्रयाण करने की प्रेरणा ही नहीं देता, भूले-भटके लोगों को सही मार्ग पर भी लाकर छोड़ता है। जिस गुरु ने हम सवको विमल विवेक और विचार दिया, जिसने पवित्र आचार और व्यवहार दिया, जिसने अडिग और अडोल आस्था एवं निछा दी, उसी गौरवमय गुरु आचार्यश्री जवाहरलाल जी के पचासवें वर्ष के पुण्य अवसर पर मन के कण-कण से श्रद्धा सुमन समर्पित हैं। हमें ऐसे महान गुरुदेव मिले, जिन पर हम जितना भी नाज करें वह थोड़ा है। वे हमारे इस जैन सम्प्रदाय के आचार्य जरूर थे, लेकिन उनमें साम्प्रदायिकता बिल्कुल नहीं थी। वे एक महान् राष्ट्रसेवी संत थे। उन्होंने राष्ट्रीयता के पक्ष में मानव जाति की भलाई के लिए ही जीवनपर्यंत कार्य किया व सवा की। उनका चिन्तन व अध्ययन इतना गहरा था कि औरों की अपेक्षा वे पचास वर्ष पहले वह कार्य करने में समर्थ थे जिसके बारे में हम आज सोच रहे हैं। साहित्य साधना-गुरुदेव अपने युग के एक प्रकाण्ड विद्वान, प्रभावक प्रवचनकार एवं यशस्वी साहित्यकार थे। जैन और अजैन जनता से उन्हें सर्वत्र एक दिव्य पुरुष जैसा सत्कार और सम्मान, प्रतिष्ठा और जयजयकार मिलता था। कुछ ऐसे विचारक होते हैं जिनके चित्त में चिन्तन की ज्योति तो जगमगाती है, परन्तु जनम वाणी द्वारा प्रकाशित करने की क्षमता ही नहीं होती और कछ ऐसे भी हैं जो चिन्तन तो कर सकते हैं और ॥ तरह बोल भी सकते हैं, परन्त अपने चिन्तन एवं प्रवचन को चमत्कारपूर्ण शैली में लिखकर साहित्य का रूप अच्छी तर नहीं दे सकते। प्रवचन गंभीर एवं तत्वस्पर्शी था, वहा उनका र संयमी जीवन का अन्तर्नाद मुखारत लेखक के अन्तर्जीवन का दर्पण होता है चरित्र निर्माण का साहित्य है। गु लेकिन आचार्य श्री जवाहर को इन तीनों ही विधाओं में कमाल हासिल था। जहां उन का चिन्तन और एव तत्वस्पर्शी था, वहां उनका साहित्य-सजन भी उत्तम कोटि का था। आचार्य श्री जी के साहित्य में उनकी जात्मा बोलती है। उनकी रचनाएँ केवल रचना के लिए ही रचना नहीं है, अपितु उनमें शुद्ध पवित्र एव का अन्तर्नाद मुखरित है। साहित्य समाज का दर्पण होता है। ठीक है, परन्तु इतना ही नहीं, वह स्वय जावन का दर्पण होता है। गुरुदेव का साहित्य आत्मानुभूति का साहित्य है, व्यक्ति और समाज के का साहित्य है। गुरुदेव राष्ट्र को ऐसा अनुपम साहित्य दे गये जिसका बहुत बड़ा मूल्य आज भी कायम है। स्थानकवासी जैन समाज के लिए यह एक बड़ा गौरव का प्रस' समाज के लिए यह एक बड़ा गौरव का प्रसंग है। श्री चंपालाल जी बांठिया ने गुरुदेव ११६
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy