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________________ क्रान्तिकारी आचार्य केशरीचन्द सेठिया । भारतवर्ष ऋषि मुनियों का धर्म-प्रधान देश रहा है। अनेकानेक महापुरुष इस पावन धरा पर अवतरित हुए हैं। करुणा मूर्ति श्रमण भगवान महावीर उनमें से एक थे। उन्हीं की श्रमण परम्परा में आचार्य श्री हुक्मीचन्दजी म.सा. के सम्प्रदाय के छठे आचार्य श्री जवाहर अद्वितीय प्रतिभा के धनी थे। युग प्रधान इतिहासविद् श्रमण संघ के गौरव जैन जगत् के देदीप्यमान सूर्य श्री जवाहराचार्य ने अपने साधु जीवन में अनेक उपलब्धियां प्राप्त की थी। दुग्ध धवल गौरववर्ण विशाल काया, भव्य एवं तेजस्वी मुखमण्डल, सौम्य स्मित हास, ब्रह्म तेज से दीप्त ललाट, साधुत्व और साधना की दिव्य-प्रभा से वलित देहयष्टि। बालकों सी सरलता पर अनुशासन में वज्र सी कठोरता। हृदय-स्पर्शी अमृतमयवाणी। संयम और शौर्य से ओत-प्रोत । वात्सल्य और प्रेम की प्रतिमूर्ति । आत्मदृष्टि और न जाने कितनी कितनी भावनाओं का अनोखा समन्वय एक ही स्थान पर हो गया था। उनका सागर सा गहन गंभीर व्यक्तित्व था। जो भी इनसे एक बार मिल लेता वही उनका श्रद्धालु भक्त बन जाता था। अपने संरक्षक पूज्य मामाजी की अकाल मृत्यु ने आपके जीवन को झकझोर दिया। संसार के दुःख एवं उसकी नश्वरता को आपने समझा। इस अनहोनी घटना ने आपके जीवन का ध्येय ही बदल दिया। भौतिक सुखा से विरक्त होकर आध्यात्मिक कल्याण की बात सोचने लगे। फलस्वरूप आपने मुनिश्री बड़े लालजी म.सा. से जैन प्रवज्या अंगीकार की। अपने गुरु श्री मगनलालजी म.सा. के सानिध्य में जैन आगमों का गहन अध्ययन किया। साथ-साथ में उपनिषद, गीता तथा अन्य धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन किया। आचार्य श्रीलालजी म.सा. का स्वर्गारोहण आषाढ़ शुक्ला तीज संवत् १६७७ को हो गया। उस समय आप भीनासर में विराजते थे। अतः वहीं पर आपको आचार्य पद की चादर ओढ़ा कर इस गौरवशाली पद पर हजारों-हजारों की जनमेदनी की साक्षी में आसीन किया। शासन की बागडोर संभालते ही आपने भारतवर्ष के अनेक प्रान्तों को फरसा। राजस्थान, गुजरात, काठियावाड़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश आदि में आपके चातुर्मास हुए। राजस्थान के रेतीले थली प्रान्त में उस समय एक सम्प्रदाय द्वारा भ्रांतिपर्ण गलत मान्यताओं की प्ररूपण, जो जैन धर्म के मूलभूत अहिंसा पर ही कुठाराघात करती थी, का प्रचुर मात्रा में प्रचार किया जा रहा था। आचार को इससे मार्मिक पीड़ा पहुंची। उनके हृदय में करुणा का स्रोत उमड़ पड़ा और आपने रजोहरण कंधे पर र निकल पड़े उसका परिष्कार करने । गांव-गांव में पद यात्रा द्वारा दुरूह परिषहों को सहकर भी गलत धारणा का पुरजोर खंडन किया। दान-दया पर आपके विचार प्रमाणिक आधार माने जाते हैं। प्रतिपादन क - KEE
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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