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________________ एक प्रश्न आचार्य का भारतीय समाज में अछूत कहे जाने और अपमानित जीवन भोगने वाले समुदायों के प्रति आचार्य श्री बहुत संवेदनशील रहे अपने जीवन काल में। रतलाम चातुर्मास का एक प्रसंग। नित्य कर्म निवृत्त हो आप एक वार चांदनी चौक से मुकाम पर पधार = रहे थे कि उनकी नजर टाट पट्टी पर सोए एक बीमार कुत्ते पर पड़ी। मौहल्ले के लोग उसकी टहलटेव में लगे थे। पूज्य श्री ने अपने व्याख्यान में कहा 'बीमार कुत्ते की सेवा में तल्लीन देखा इस नगर के लोगों को तो लगा कि यहाँ के लोगों में जीवदया के भाव दृढ़ हैं। पर यदि कोई हरिजन भाई बहिन बीमार पड़ जावे तो क्या इस नगरी के आप सज्जन उसकी भी सेवा इसी भाव से करेंगे? आप लोगों की चुप्पी बता रही है कि नहीं करोगे सेवा आप हरिजन की क्योंकि वह तो अछूत है। मेरा एक सवाल है—मनुष्य की पुनवानी बड़ी है या पयु की? कुत्ता आपके आंगन तक! हरिजन का पल्ला लगे तो आपको पाप!' आचार्य श्री का यह सवाल आज भी समाज में खड़ा है। आचार्य श्री ने फिर किया सवाल ! अजमेर में एक वहिन लखारे की दुकान पर चूड़ा पहिन रही थी। महाराज सा. को देख उसने चूंघट ___ निकाला। पूज्य श्री ने अपने व्याख्यान में—पर्दाप्रथा की रूढ़ि पर प्रहारक प्रश्न प्रस्तुत कर दिया 'आज एक चूड़ा पहिगने वाली वहिन को सबसे बुरी दृष्टि वाला में ही दिखाई पड़ा ?' एक सिलसिला सवाल का और एक काठियावाड़ी वहिन से पूज्यश्री पूछ बैठे-'आप तो मील का आटा नहीं खाती होगी?' वहिन ने कहा 'गने तो कोई हरकत नथी। पर ये म्हारी बहुएं करे छ। अमी तो वम्बई नी सेठानिया थई एटल पीसवानो काम पासवानो दुख वीजाने आपौ।' पूज्य श्री ने कहा 'संतान नो जन्म देना महा दुख कहावे । वीजा ने सुपर्द कई ने करो!' समाज हठ भी एक प्रबल हठ है। वाल हठ, राजहठ और जोगी हठ की टक्कर का। इस हठ से पादाशील रहकर भारत का कोई क्रान्तिचेता आध्यात्मिक आचार्य-प्रचेता ले सका 'मधुर एक टक्कर' तो जीवटवान अवाहराचार्य ही ! जैन समाज को हिलाकर रख दिया। उन्होंने कृषि कर्म को युग धर्म सम्मत करार देकर । तपस्या के साथ जुड़े आडम्बर को झटका देने वाला यही महान संत था । रूढ़ि एक दिन में नहीं पनपती । पर एक दिन आता है य एसको चूल हिलाने वाला कोई मर्यादा पुरुषोत्तम खड़ा हो जाता है—जवाहराचार्य सरीखा जननायक। 0
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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