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________________ 'हमारे समाज में मुख्य दो मार्ग है—साधुवर्ग और श्रावक वर्ग। समाज सुधार का भार साधुओं पर पड़ने का परिणाम क्या हो सकता है। यह समझने के लिये यति समाज का उदाहरण मौजूद है—रहा श्रावक वर्ग, सो इसी वर्ग को समाज सुधार की प्रवृत्ति करनी चाहिए। मगर हमारा श्रावकवर्ग दुनियादारी के पचड़ों में इतना फंसा रहता है और उसमें शिक्षा का इतना अभाव है कि वह समाज सुधार की प्रवृत्ति को यथावत संचालित नहीं कर सकता। श्रावकों में धर्म संबंधी ज्ञान भी इतना पर्याप्त नहीं है, जिससे व धर्म का लक्ष्य रखकर, धर्म मर्यादा को अक्षुण्ण बनाये रखकर तदनुकूल समाज सुधार कर सके। इस स्थिति में किस उपाय का अवलम्बन करना चाहिये ?' आचार्यश्री ने साधु व श्रावक वर्ग की वस्तु स्थिति को सामने रख कर जो समाधान समाज को दिया वह आज भी उपयोगी है 'मेरी सम्मति के अनुसार इस समस्या का हल एक ऐसे तीसरे वर्ग की स्थापना करने से हो सकता है जो साधुओं व श्रावकों के मध्य का हो। यह वर्ग न तो साधुओं में परिगणित होगा न गृहस्थी श्रावकों में। इस कार्य में वे ही व्यक्तिं समाविष्ट किये जाय जो ब्रह्मचर्य का पालन करें, अकिचन हों अर्थात् अपने लिये धन-संग्रह न करें। वे लोग समाज की साक्षी से, धर्माचार्यों के समक्ष इन दोनों व्रतों को ग्रहण करें। इस प्रकार के तीसरे त्यागी श्रावक वर्ग से समाज सुधार की समस्या भी हल हो जाएगी और धर्म का भी विशेष प्रचार होगा। साथ ही निर्ग्रन्थ वर्ग भी दूषित होने से बच जायेगा।' आचार्यश्री बहुत दूरदर्शी थे। उनके चिन्तन का मूल सूत्र था 'धर्म प्रभावना के लोक प्रसार का सूत्र सुदृढ़ हो, धर्म की श्रेष्ठता का प्रतिपादन हो। इस बात को स्पष्ट करते हुए आपने कहा -अगर अमेरिका या किसी अन्य देश में सर्वधर्म सम्मेलन होता है तो वहाँ सभी धर्मों के अनुयायी अपने-अपने धर्म की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करते हैं। ऐसे सम्मेलनों में मुनि सम्मिलित नहीं हो सकते। अतः धर्म प्रभावना का कार्य रूक जाता है। यह तीसरा वर्ग ऐसे अवसरों पर उपस्थित होकर जैन धर्म की वास्तविक उत्तमता का निरूपण करके धर्म की बहुत सेवा कर सकता है।' समय साक्षी है कि आचार्यश्री के इस युगांतरकारी समाज सुधार व धर्म प्रसार के समाधान स देश-विदेश में जैन धर्म के प्रचार-प्रसार का, जनसेवा व चेतना का कार्य यह चेतनावान तृतीय वर्ग आज सजगता के साथ संघ मर्यादानुकूल कर अशांत विश्व की असहाय जनता के बीच 'धर्मपाल प्रतिबोध' का समता ज्ञान कर्मयोग प्रतिफलित करता हुआ आचार्यश्री की धर्म प्रभावना के सपने को साकार कर रहा है। समाज हेतु तृतीय वर्ग की इस अद्वितीय उद्भावना पर विचार करते हुए आज हृदय प्रसन्नता एव गव का अनुभव करता है। संसार का कल्याण मात्र वचन से नहीं व्यवहार धर्म से होता है। आचार्यश्री जवाहरलाल जी म.सा. 1 कालजयी विचारक ने तृतीय आध्यात्मिक शक्ति को जैन जगत से संघ बद्धकर, समतामूलक अहिंसक समाज का __ अपूर्व सन्देश पूरे देश और विश्व को दिया है।
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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