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________________ एक कालजयी विचारक चम्पालाल डागा युग प्रबोधक थे आचार्यश्री जवाहरलालजी म.सा. । उनका चिन्तन का दायरा बहुत व्यापक था। उन्होंने जैन समाज को विश्वधारा में जोड़ने के लिये एक युगांतरकारी आध्यात्मिक नेतृत्व दिया । आचार्यश्री की महान देन युगप्रधान आचार्यश्री ने अहिंसा को शूरवीरों का धर्म सिद्ध किया और कहा कि जैन कायर नहीं होते। वे होते हैं-आत्मवली। आचार्यश्री ने आजीवन निर्भीकता का सन्देश दिया। वे अन्धविश्वासों से सदा परे रहे। __ उन्होंने गृहस्थ के लिये सूत्र बांचने के निषेध को अमान्य किया। 'वांचे सुतर तो मरे पुतर' की अंध सामाजिक रुटि से श्रावक समाज को मुक्त कर अनेक साधकों को उन्होंने न केवल सूत्र-वाचन की प्रेरणा दी वल्कि उन्हें व्याख्यान हेतु ऐसे स्थानों पर जाने के लिये अभिप्रेरित किया जहाँ मुनिवृन्द नहीं पहुँच पाते। इस युग-पहल ने संघ की विचार शक्ति का मार्ग प्रशस्त किया। यह महान देन थी आचार्यश्री की जैन समाज को। समाज सुधार कौन करें? आचार्यश्री की दृढ़ धारणा थी कि व्यवहार से गया गुजरा समाज, धर्म की मर्यादा को कायग नहीं रख सकता। पारलौकिक व्यवहार सुधार से पहले लौकिक व्यवहार की शुद्धता पर बल देते हुए उन्होंने कहा 'जो समाज लौकिक व्यवहार में बिगड़ा हुआ होगा उसमें धर्म कि स्थिरता किस प्रकार रह सकेगो ?' आचार्यश्री ने कहा 'समाज सुधार का प्रश्न उपेक्षणीय नहीं है।' उन्होंने एक प्रश्न उटाया 'समाज का सुधार कोन करे ?' इस सार्थक सवाल के सन्दर्भ में ही बात उठी कि समाज सुधार धावक करे किसान निःसन्देह इस प्रश्न ने एक सर्वव्यापी विचार-मंथन और मंत्रणा का माहौल खड़ा कर दिया। महापुरुष प्रस्तुत करते हैं प्रश्न । गहराते हैं अपना चिन्तन । वे रखते हैं संवाद में समाज को। नाना को तो सात ह। रूढ़ि-मुक्त और धर्म संयुक्त समाज की रचना-संकल्पना का आचार्य श्री का आचार विचार या--- साधना को निर्मल पृष्ठभूमि के निर्माण का। उनका चिन्तन साफ धा। उनके विचारानुसार धर्म-साधना . य समाजिक व धार्मिक वातावरण की शद्धि परमावश्यक है। उन्होंने समाज सुधार के प्रश्न का समाधान व अरटूबर १६३१ तिधि में दिल्ली में, स्थानकवासी जैन कान्फरेंस की आम सभा में अपने युगीन सम्बोधन या
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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