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________________ 190 आलोडं इंगालकम्मे वणकम्मे साडीकम्मे भाडीक - म्मे फोडीकम्मे दंतवणिजे लक्खवणिज्जे रसवणिजे केसवणिज्जे विसवणिजे जंतपिलणिया कम्मे निइंच्छणिया कम्मे दवग्गि दावणिया कंम्मे सरदहतलाय परिसोसणिया कम्मे असईजण पोसणिया कम्मे जो मे देवसि अइयार कउ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥ 4 हिंदी पदार्थ --- ( सातमुं व्रत) सप्तम व्रत (उपभोग) उपभोग - जो वस्तु एक ही वार आसेवन करनेमें आवे उसको उपभोग कहते है जैसे किअन्नादि तथा (परिभोगविहं ) परिभोग उसका नाम है जो पदार्थ पुनः २ आसेवन करनेमें आवे जैसे कि वस्त्र और आभरण प्रमुखका (पञ्चकखायमाणे ) प्रत्याख्यान करता हुआ निम्नलिखित वस्तुओंका प्रमाण करे " द्रव्य परिमाण में ग्रहण करने योग्य पदार्थोंका ग्रहण करना सिद्ध किया गया है, अतः साथ ही मनुष्य आहारका भी विवेचन हो गया है क्यों कि-श्री स्थानांग सूपके चतुर्थ अध्यायके चतुर्थ उद्देशमें लिखा है कि- मसाणं चविहे आहारे पण्णत्ते तज्जा असणे पाणे नाइमे साइमे ( इति सूत्रम् ) इसका भर्थ यह है कि मनुष्योंका चार प्रकारसे आहार प्रतिपादन किया गया है-जैसे कि-भन्न १ पानी २ खादिम मिठाई आदि ३ स्वादिम जैसे ताम्बूलादि ४ । इस सूत्र से सिद्ध होता है कि मनुष्य मामका उक्त चारों प्रकारका ही आहार है किन्तु मासभक्षण तो केवल पशु आहार' ही बतलाया गया है। मासमक्षणका फल केवल नरक हो कथन किया है जैसे विवहिं ठाणेहिं जीवाणे रतित्तावकम्म परेति तज्जहा महारयाते महापरि हताने पर्वेदिय पणं कुणिममाहरिणं ॥ अर्थ- -चार कारणों से जीव नरकायुको पांध लेते हैं जैसे कि महा हिंसाते १ महा परिग्रहसे २ पंचेंद्रिय वघसे ३ और मांस भक्षणसे ४ | और आप ' )
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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