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________________ तत्त्वार्थसूत्रे मनुमोदते चेत्येवं विशति विधं जीवाधिकरणं भवति । सच्चापि-सप्तविंशति विधजीपाधिकरणं क्रोध, मान, माया, लोम रूए सपायचतुष्टयभेदात् प्रत्येक "चतुर्विध भवतीति सर्वसम्मेललेलाऽष्टोत्तरशतं जीवरूपं साम्पराविककर्मास्ववा. विसरणं भवति । तद्यथा-क्रोध तमनःसंरस्मा यानकृतमनः संरम्भः मायाकृत भनरक्षः लोअकुतमनारमा ४ एवं-क्रोधकारितमना संरम्भः मानभारितमनः संहा मायाकारित मनालमा लोमकारितमनः संरम्भः-८ शोध लुगोदित मनः संरक्षण मानानुमोदितमनः संरस्मा मायानुमोदित मन: संरशः लोमानुमोदिनसनः संरस्मश्च १२ एवं क्रोधकृतवाक् संरम्भः मानकृत पास रस्सः मायाकृतवाक्संरम्भः लोभकृतवासरस्मः १६ क्रोधकारितवाक् आरंभ करवाता है और आरंभ की अनुमोदन करता है। यह मसाईल प्रकार का जीवाधिकार ण हुआ इस सत्ताईस प्रकार के जीमाधिकरण में रहे प्रत्येक के क्रोध, साना गाया और लोभ रूप चार कपायों के लेद से चार-चार भेद होते है। इन समस्त भेदों को सम्मिलित करने पर जीवाधिकरण के एक ही आठ भेद होते हैं। एक सौ साठ भेदों का ब्यौरा इस प्रकार हैक्रोधकृतमनासंरंभ, मानकृतमनारंभ. माथाकृतम् नारंभ लोस्कृतान सरंभ, (४) इसी प्रकार शोधारितमान सरंभ, खानकारितमनार भ, मायाकारितमाम संभा, लोभकारितालावरम (८) शोधालुमोदितननःसंरंभ मानानुमोदितबारंभ मायालुमोदितनारंभ और लोभानुमोदिनमाल ल (१२) इसी कार क्रोधकृतवचनसंरंभ, मानकृतवचन स, मायालयाचनलारा, लोभकृतवचना (१६) शोधकारितઆ સત્તાવીશ પ્રકારનું જીવાધિકરણ થયું. આ સત્તાવીશ પ્રકારના જીવાધિકરણમાથી પ્રત્યેકના ક્રોધ, માન, માયા અને લાલ રૂપ ચાર કષાના ભેદથી ચાર-ચાર ભેદ થાય છે. આ સઘળા ભેદનો સરવાળો કરીએ તે જીવાધિકરણના એક આઠ ભેદ થાય છે. એકસો આઠ ભેદોનું વિવરણ આ પ્રકારે છે–ફોધકૃતમનઃસંરંભ માનકૃતમનઃ स, सायनसनःसन, मतमन:सल (४) मावी ४ शोध रितમનઃસંરંભ, માનકારિતમાનસંરંભ, સાયકરિતમનઃસંરંભ, લાભકારિત મન: સંરંભ (૮) ક્રોધાદિતમનઃસંરંભ, માનાનુદિતમનઃસંરંભ, માયાનુદિત મનસંરંભ, અને લેભાનુદિતમનઃસંરંભ (૧૨) એવી જ રીતે કોપકૃતવચનસંરંભ, માનકૃતવચનસંરંભ માયાકૃતવચનસંરંભ, અને લેભકૃતવચનસંરંભ (૧૬) ફોધાકારિતવચનસંરંભ, માસ્ક રિતવચનસંરંભ, માયાકારિતવચનસંરંભ
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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