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________________ MES दीपिका-नियुक्ति टीका अ.७ खू.७९ वितक स्वरूपनिरूपणम् छाया---उत्पाद स्थिति मज्ञादि पर्यायाणां यदेक द्रव्ये । नाना नयानुसरणं पूर्वगतश्रुतानुसारेण ॥१॥ सविचार मर्थ व्यञ्जन योगान्तरतस्तथा प्रथमशुक्लम् । भवति पृथक्त्ववितर्कसविचारं सरागभावला ॥२॥ यत्पुनः सविस्पं निवातशरणप्रदीपमिव चित्तम् । उत्पाद स्थिति सङ्गादिकाना मेकस्सिपर्याये ॥३॥ अविचारमर्थ व्यञ्जन योगान्तर स्तथा द्वितीय शुक्लम् । पूर्वगत श्रुतावलम्बन मेकत्ववितर्कमविचारस् ४ ७९ । मूलम्-विउसग्गे दुविहे नसावयओ ॥८॥ छाया-व्युत्सों द्विविधः, द्रव्यभावभेदतः ॥८०॥ के उत्पाद, व्यय और घौध आदि पर्यायों का अर्थ व्य जन और योग के परिवर्तन के साथ चिन्तन करना पृथक्त्ववितर्म-लविचार नामके प्रथम शुक्लध्यान कहलाता है। यह ध्यान छमस्थ में होता है। १-२ जो ध्यान वायुविहीन स्थान में रक्खे हुए दीपक के समान निष्प्रकम्प होता है और उत्पाद, व्यय तथा धौब्ध :आदि में से किसी एक पर्याय का ही चिन्तन करता है वह एकस्ववितर्क अविचार नामक दसरा शुक्लध्यान कहलाता है । यह ध्यान भी पूर्वत श्रुत के आश्रय से होता है किन्तु अर्थ, व्यंजन और योग के संक्रमण से रहित होता है ॥३-४॥ ७९॥ 'विउसग्गे दुविहे' इत्यादि सू० ॥८॥ सूत्रार्थ--व्युत्सर्ग दो प्रकार का है--द्रव्य व्युत्सर्ग और भाव व्युत्सर्ग ।। ८०॥ વ્યય અને દ્રૌવ્ય આદિ પર્યાયોને અર્થ, વ્યંજન અને ગના પરિવર્તનની સાથે ચિન્તન કરવું પૃથકવિતક સવિચાર નામક પ્રથમ શુકલધ્યાન કહેવાય છે આ દયાન છઘઅવસ્થામાં થાય છે ૧ -રા ૨ ધ્યાન વાયુવિહીન સ્થાનમાં રાખવામાં આવેલા દીપકની માફક નિપ્રક૫ હેય છે અને ઉત્પાદ વ્યય તથા ધ્રૌવ્ય આદિમાંથી કોઈ એક પર્યાયનું જ ચિન્તન કરે છે. તે એકવિતર્ક–અવિષ્ય ૨ નામક બીજું શુકલ યાન કહે વાય છે. આ ધ્યાન પણ પૂર્વગત શ્રતના આશ્રયથી થાય છે. ૩-૪ કલા _ 'विउपग्गे दुविहे' त्या સવાથ–-વ્યત્સર્ગ બે પ્રકારના છે-દવ્યયુત્સર્ગ અને ભાવવ્યુત્સર્ગ ૮૦
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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