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________________ दीपिका-निर्युक्ति टीका अ.७ सू.७३ धर्म ध्यानस्य चातुर्विध्यनिरूपणम् ५२७ तस्यार्थदीपिका -- पूर्वं तावद - आतरौद्रधर्मशुक्लध्यानभेदेन चतुर्विधेषु ध्यानेषु क्रमशः प्रत्येकं चतुर्विधतयाऽऽर्त्तध्यानं - रौद्रध्यानञ्च प्रतिपादितम्, सम्पति - क्रमप्राप्तस्य धर्मध्यानस्य चातुर्विध्यं प्रतिपादयितुमाह - 'धम्मज्झाणं वि' इत्यादि । धर्मध्यानं चतुर्विधम्, तद्यथा आज्ञाविचयः १ अपायचिचयः २ विपाकविचयः ३ संस्थानविचयः ४ आज्ञाविचयादिरूपप्रयोजन चातुर्विध्यात् चतुर्विधप्रयोजनकत्वाद् धर्मध्यान मपि चतुर्विधम्, धर्म:- वस्तुस्वभावरूपः, उक्तञ्च -- धम्मो वत्थु सहायो खमादि भावोग दसविहो धम्मो । चारितं खलु धम्मो जीवाण य रक्खणं धम्मो ॥१॥ धर्मो वस्तु स्वभावः क्षमादिभावश्च दशविधो धर्मः । चारित्र' खलु धर्मो जीवानाश्च रक्षणं धर्म ॥ १॥ इति । तत्वार्थदीपिका - आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान, के भेद से चार प्रकार के ध्यानों में से प्रत्येक के चार चार भेद होने से आर्त्त और रौद्रध्यान के भेदों का निरूपण किया जा चुका है, अब क्रमप्राप्त धर्मध्यान के चार भेदों का प्रतिपादन करने के लिए सूत्रकार कहते हैं धर्मध्यान चार प्रकार का है - (१) आज्ञाविचय (२) अपायविचय (३) विपाक विचय और (४) संस्थान विषय | आज्ञा आदि प्रयोजन चार प्रकार के हैं अतएव धर्मध्यान भी चार प्रकार का है । धर्म वस्तु का स्वभाव है। कहा भी है 'वस्तु का स्वभाव धर्म कहलाता है । क्षमा आदि दस प्रकार के भाव भी धर्म कहलाते हैं । चारित्र भी धर्म कहलाता है और जीवों का रक्षण करना भी धर्म कहलाता है ॥१॥ तत्त्वार्थ ही पिडा-भात्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान भने शुद्धધ્યાનના બેથી ચાર પ્રકારના ધ્યાનેામાંથી પ્રત્યેકના ચાર ચાર ભેદ હાવાથી આત્ત અને રૌદ્રધ્યાનના ભેદોનું નિરૂપણુ કરવામાં આવ્યું. હવે ક્રમપ્રાસ ધમ ધ્યાનના ચાર ભેદોનુ પ્રતિપાદન કરવા માટે સૂત્રકાર કહે છે~~ धर्मध्यान थार प्रारना छे - ( १ ) आज्ञावियय ( २ ) अपायवियय (3) વિપાકવિચય અને (૪) સસ્થાનવિય અજ્ઞા આદિ પ્રત્યેાજન ચાર પ્રકારના છે આથી ધર્મધ્યાન પણ ચાર પ્રકારના છે. ધર્મ એ વસ્તુને સ્વભાવ છે. કહું પણુ છે. વસ્તુના સ્વભાવ ધમ કહેવાય છે. ક્ષમા આદિ દેશ પ્રકારના ભાવ પણ ધમ કહેવાય છે. ચારિત્ર પણ ધમ કહેવાય છે અને જીવાનુ રક્ષણ કરવું એ પણ ધમ કહેવાય છે ॥ १ ॥ 9
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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