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________________ तत्त्वार्थस्त्रे स्पति प्रश्नः-प्रच्छना-२ अधीत सूत्रार्थयोः पुनः पुनः पठनम् परिवर्तना-३ विदितार्थस्य मनसा चिन्तनम्-अनुप्रेक्षा ४ श्रुतचारित्ररूपधर्मस्योपदेशो धर्मकथा५ उक्तश्च भगवती सूत्रे २५ शतके ७ उद्देशके ८०२-सूत्रे-'सज्झाए पंचविहे पणत्ते वायणा-पडिपुच्छणा-परिदृणा अणुप्पेहा-धम्मकहा' इति । स्वाध्यायः पञ्चविधः, प्रज्ञप्तः, तद्यथा-वाचना १ प्रतिश्च्छना २ परिवर्तनम् ३ अनुप्रेक्षा ४ धर्मकथा ५ इति । एवम्-उत्तराध्यारेऽप्युक्तम् एवञ्च-वाचनादयः पञ्च तावत् स्वाध्यायपदेन ग्रहीतव्याः ॥६६॥ मूलम्- एमत्त चित्तावठाणं झाणं ॥६७॥ छाया-'एकत्र चित्तावस्थानं ध्यानम् ॥६७॥ तत्वार्थदीपिका--'पूर्व तावत पइविधेषु प्रायश्चित्ताद्याभ्यन्तरतपासु पञ्चानां प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्यस्वाध्यायानां यथाक्रमं प्ररूपणं विहितम्। अर्थ की दृढता के लिए सूत्र या अर्थ के विषय में आचार्य से प्रश्न करना प्रच्छता है। पठित सूत्र एवं अर्थ का पुन:पुनः पठन करना परिवर्तना है। ज्ञात अर्थ का बार वार चिन्तन करना अनुप्रेक्षा है |श्रुत एवं चारित्र रूप धर्म का उपदेश देना धर्मकथा है। भगवतीसूत्र के २५ वे शतक के ७वे उद्देशक के ८०२ सूत्र में कहा है-'स्वाध्याय पांच प्रकार का कहा गया है-वाचना, प्रतिप्रच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा एवं धर्म कथा। इसी प्रकार उत्तराध्ययन स्यूम में भी कहा गया है। इस प्रकार स्वाध्याय शब्द से वाचना आदि पांचों को ग्रहण करना चाहिए ॥६६॥ 'एगत्त चित्ताचट्ठाणं' इत्यादिसूत्रार्थ--एक जगह चित्त का स्थिर होना ध्यान है ॥६७॥ तत्त्वार्थदीपिका-पहले छह प्रकार के आभ्यन्तर तपों में से प्रायश्चित्त પુનઃ પુનઃ પઠન કરવું પરિવર્તન છે. જાણેલા અર્થનું વારંવાર ચિન્તન કરવું અનુપ્રેક્ષા છે અને શ્રત અને ચારિત્ર રૂપ ધર્મનો ઉપદેશ આપ ધર્મકથા છે. ભગવતી સૂત્રના રૂપમાં શતકના માં ઉદ્દેશકના ૮૦૨ સૂત્રમાં - ४झुछ-स्वाध्याय पाय जान वामां माव्या छ-बायना प्रतिरछना, પરિવર્તાના, અનુપ્રેક્ષા અને ધર્મકથા આવી જ રીતે ઉત્તરાધ્યયન સૂત્રમાં પણ કહેવામાં આવ્યું છે. આમ સ્વાધ્યાય શબ્દથી વાચના આદિ પાંચેયનું ગ્રહણ કરવું જોઈએ. ૬૬ 'एगत्तचित्तावद्वाणं झाणं' त्या સૂત્રાર્થ-એક જગ્યાએ ચિત્તનું સ્થિર થવું ધ્યાન છે. દુકા તવાથદીપિકા–પહેલા છ પ્રકારના આભ્યન્તર તપમાંથી પ્રાય
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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