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________________ दीपिका-नियुक्ति टीका अ.७ सू.६३ दशविधायश्चित्तनिरूपणम् ७५ तत्रोपकरणादि दानेन गुरोरनुकम्पासुस्पायाऽऽलोचने-आकम्पितं नाम दोषः, वचनेनाऽनुमायाऽऽलोचनेऽनुमानितं नामदोषः, यल्लोकदृष्टं तस्यैवालोचने दृष्टं नामदोषः, स्थूलस्यैवाऽऽलोचन्ने बादरं नाम दोषः, अल्पस्यैत्र दोषस्याऽऽलोचने सूक्ष्म नामदोषः, केनचित्-पुरुषेण निजदोषे प्रकाशिते सति यादृशो दोषोऽनेन प्रकाशित स्वादृशो समापि वर्तते इत्येवं प्रच्छन्नस्य दोषस्याऽऽलोचने छन्नं नाम आकम्पित्त, अनुमानित, दृष्ट, बादर, सूक्षम, छन्न, शब्दाकुल, बहुजन, अव्यक्त और तत्लेबी नामक इस दोष आलोचना के समझना चाहिए। इनका स्वरूप इस प्रकार है। (१) गुरु को उपकरण बना आदि देकर, उनके चित्त में अपने प्रति अनुकम्पा उत्पन्न करके आलोचन करना आकम्पित नामक दोष है। (२) वचन से अनुमान करके आलोचन करना अनुमानित दोष है। (३) लोगों ने जिल दोष को देख लिया हो उसी की आलोचना करता दृष्ट नामक दोष है।। (४) स्थूल दोष की ही आलोचना करना बादर दोष है। (५) सूक्ष्म-छोटे से अपराध की आलोचना करना सूक्ष्म दोप है। (६) छन्न-किसी पुरुष के द्वारा अपना दोष प्रकाशित करने पर ऐसा कहना कि-'जैसा दोष इन्हें लगा है वैसा ही मुझे भी लगा है, इस प्रकार प्रच्छन्न (गुप्त) रूप से दोष को प्रकाशित करना छन्न नामक दोष है। मापित, मनुमानित, दृष्ट, माह२, सूक्ष्म, छन्न, शहास, मन, અવ્યક્ત અને તત્સવી નામના દશ દેષ આલોચનાના સમજવા જોઈએ, એમનું સ્વરૂપ આ પ્રમાણે છે (૧) ગુરૂને ઉપકરણ વસ્ત્ર આદિ આપીને, તેમના ચિત્તમાં પિતાની તરફ અનુકમ્પા ઉત્પન્ન કરીને, આલેચના કરવી. આકર્ષિત-નામક દેષ છે. (૨) વચનથી અનુમાન કરીને, આલોચના કરવી અનુમાનિત દેષ છે. (૩) લોકેએ જે દેષને જોઈ લીધા હોય તેની જ આલોચના કરવી દષ્ટ નામક દેષ છે. (૪) સ્થૂળ દેષની જ આલેચના કરવી ભાદર દેષ છે. (૫) સૂફમ-નાના સરખા અપરાધની '' કરવી સૂક્ષ્મ દોષ છે. (૬) છન્ન-કોઈ પુરૂષ દ્વારા દેષ મતે આ પ્રમાણે કહેવું
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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