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________________ ७० तत्त्वार्थस्त्र तत्वार्थदीपिका-पूर्वमुने -मायश्चित्तविनय-वैयावृत्यादि भेदेन पविध मास्परं तपः.प्ररूपितम्, तत्र-प्रथमोपात्तं प्रायश्चित्तं तावद् दशविधं भवतीति प्रयितुमाह- पायच्छित्ते दस इत्यादि । प्रायश्चित्तम्-आत्मशुद्धिकारकक्रिया विशेषो दाविधं वर्तते, आलोचनमतिक्रमण-तदुमय-विवेक-व्युन्सर्ग-तप"छेद-मू कानवस्थाप्यपाराञ्चिक भेदतः । तथा चाऽऽलोचनमायश्चित्तम् १ प्रतिक्रमणप्रायश्चित्तम् २ तदुमयमायश्चित्तम् ३ विवेकमायश्चित्तम् ४ व्युत्सर्गपायश्चित्तम् ५ तपः प्रायश्चित्तम् ६ छेद प्रायश्चित्तम् ७ मूलपायश्चित्तम् ८ अनवस्थाप्यमायश्चित्तम् ९ पाराञ्चिक प्रायश्चित्तम् १०, इत्येवं दशविधं प्रायश्चित्तम् । तुत्राऽऽचार्या प्रमादल्य दशदोपविवर्जितं निवेदन मालोचन मुच्यते, एकान्तो तवार्थदीपिका-पूर्व जून में प्रायश्चित्त, विनय, वैधावृत्य आदि के भेद ले छह प्रकार के आसन्नर तप का निरूपण किया गया, उनमें प्रथम आपन्तर तप प्राश्चित्त के दल भेदों का यहां निरूपण किया जाता है। प्रायश्चित्त अर्थात् आत्मशुद्धि कारक क्रिया के दस भेद हैं-(१) आलोचन (२) प्रतिक्रमण (३) उभय-आलोचन-प्रतिक्रमण (४) विवेक (५) व्युत्लग (६) तप (७) छेद (८) मूल (२) अनवस्थाप्य और पारांचिक । इस प्रकार (१) आलोचन प्रायश्चित्त (२) प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त (३) तदुभयप्रायश्चित्त (४) विवेकप्रायश्चित्त (५) व्युत्सर्गप्रायश्चित्त (६) रूप प्रायश्चित्त और (१०) पाराचिकप्रायश्चित्त, इस तरह दस प्रकार का प्रायश्चित्त है। (१) आलोचन-आचार्य और उपाध्याय के समक्ष अपने प्रमाद તત્વાર્થદીપિકા–પૂર્વસૂત્રમાં પ્રાયશ્ચિત્ત, વિનય, વૈયાવૃત્ય આદિનાં ભેદથી છ પ્રકારના આ૫ત્તર તપનું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું, તેમાં પ્રથમ આભ્યન્તર તપ પ્રાયશ્ચિતના દશ ભેદનું અહીં નિરૂપણ કરવામાં આવે છે પ્રાયશ્ચિત અર્થાત્ આત્મશુદ્ધિકારક ક્રિયાના દશ ભેદ છે-(૧) આલેચન (२) प्रतिम (3) Sal-मासायन-प्रतिम (४) विव४ (५) ०युत्सग (6) त५ (७) है। (८) भूग (6) मनवस्थाप्य भने (१०) पातथि: RAI श२ (१) माटोयन (२) प्रायश्चित्त (२) प्रतिभ प्रायश्चित्त (3) तमयप्रायश्चित (४) विवे प्रायश्चित्त (५) व्युत्सम प्रायश्चित्त (६) तप:प्रायश्चित्त (७) प्रायश्चित्त (८) भूप्रायश्चित्त (e) 114थाप्यप्रायश्चित्त मन (१०) પાર ચિપ્રાયશ્ચિત્ત આ રીતે દશ પ્રકારના પ્રાયશ્ચિત્ત છે. (૧) આલોચન-આચાર્ય અને ઉપાધ્યાયની રૂબરૂ પિતાના પ્રમાદનું દશ
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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