SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 725
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दीपिका-नियुक्ति टीका अ. ७ . ६३ दशविधवायश्चित्तनिरूपण કર एतत्पश्चममाभ्यन्तरं तपः उच्यते ५ शयने - उपवेशने स्थाने - ऊर्ध्वस्थाने कायचेष्टायाः वजेनं व्युत्सर्ग इत्युच्यते ६ इत्येवं षड् विधं खल्लाभ्यन्तरं तपो व्यपदिश्यते । ६२ । मूलम् - पायच्छित्ते तवे दलविहे, आलोयण पडिकम्मण-तदुभयविवेगविउ सग्गतच्छेदमूलावणटुप्प पारंचियभेयओ ॥६३॥ छाया - प्रायश्चित्तं दशविधम्, आलोचन - प्रतिक्रमण - तदुमय - विवेकव्युत्सर्ग -तप-छेद - मूलानवस्थाप्य पाराश्चिकभेदतः ॥६३॥ परिहार करके या पौरुषी का ध्यान रख कर मूल सूत्र का अध्याय अर्थात् पठन करना स्वाध्याय है । (५) ध्यान - जिसके द्वारा वस्तु का चिन्तन किया जाय वह ध्यान । यहां आर्त्तध्यान और रौद्रध्यान को त्याग कर धर्मध्यान और शुक्लध्यान ही ग्रहण करना चाहिए । यह पांचवां आभ्यन्तर तप है । (६) शयन या स्थान में अर्थात् बैठ कर या खडे होकर काय संबंधी चेष्टाओं का त्याग करना व्युत्सर्ग है । यह छह प्रकार का आभ्यन्तर तप है ॥६२॥ 'पायच्छिते दसविहे' इत्यादि । ०६३ || सूत्रार्थ - प्रायश्चित्त दस प्रकार का है - (१) आलोचन (२) प्रतिक्रमण (३) तदुषय - आलोचन - प्रतिक्रमण (४) विवेक (५) व्युत्सर्ग (६) तप (७) छेद (८) मूल (९) अनवस्थाप्य और (१०) पारांचिक || ६३ || કરીને અથવા પારસીનુ ધ્યાન રાખીને મૂળસૂત્રનું ધૈયયન અથવા પઠેન કરવુ. સ્વાધ્યાય છે. (૫) ધ્યાન—જેના વડે વસ્તુનુ' ચિન્તન કરવામાં આવે તે ધ્યાન અત્રે આન્તધ્યાન અને રૌદ્રધ્યાનના ત્યાગ કરીને ધમયાન અને શુકલધ્યાન જ ગ્રહણ કરવું જોઈએ. આ પાંચમુ આભ્યન્તર તપ છે. (૬) શયન અથવા સ્થાનકમાં અર્થાત્ ઉભા થઈ ને કે એસીને, કાયા સ’બધી ચેષ્ટાઓને ત્યાગ કરવા વ્યુસ છે. આ છ પ્રકારના આભ્યન્તર તપ છે. દા 'पायच्चित्त दस बिहे' त्याहि सूत्रार्थ - प्रायश्चित्त दृश अारना है - ( १ ) आसायन (२) अति भागु (3) तदुभये - आयोथन - प्रतिभायु (४) विवेक (५) व्युत्सर्ग (६) तय (७) छे! (८) भूज (E) अनवस्थाय्य भने (१०) पाशंथि४. ॥६३॥
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy