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________________ दीपिका-निर्मुक्ति टीका अ.९ .९ मोक्षतत्वनि SH ***** H - तिर्यगादि भेदात् त्रिणवंति नामकर्माणि गति-जाति-नाम भेदात्, द्वे गोत्र कर्मणी उच्चनीचगोत्र भेदात् । पञ्चान्तरायकर्माणि दानान्तरायादि भेदात्, इत्येव सककानों पञ्च- नवाऽष्टाविंशति द्विचतुःत्रिणवति द्विपञ्च संख्यकानां ६-९-२८-३ ४२९३-२-६ - अष्टचत्वारिंशदधिकशते कर्मणा क्षलक्षणो मोक्षन्तव्यः एतेषां च कर्मणां विशेष स्वरूपाणि निर्युक्तौ प्रशष्यते ॥ १ ॥ 'तत्त्वार्थनियुक्ति -- पूर्व खलु - जीवाजीदंवन्धपुण्यपापात्र व संवर निर्जरामोक्षरूपनवतश्वेषु - उत्तराध्ययनोक्तेषु यथाक्रमं जीवादि निर्जरापर्यन्तानामष्ट तत्त्वानामष्टसु अध्यायेषु प्रत्येक मेकैकस्मिन् अध्याये सविस्तरं रूपणं कृतम्, सम्पति-नवमं मोक्षवत्त्वं रूपयितुं नवममध्यायं पारमते -'संथल सम्म देखए, आयुकर्म के चार भेद है, गतिनाम, जातिवाल आदि के भेद से तेरा " नमक के भेद हैं, उच्च और नीच के भेद से गोकर्ण दो प्रकार का है । दानान्तराय आदि के भेद से अन्तराय कर्म के पांच भेद हैं। इस प्रकार पांच, नौ, अट्ठाईस, दो, चार, तिराणये, दो और पांच (५९-२८-२-४-९३-२-५) मिलकर एक सौ अडतालील कर्म प्रकृतियों का क्षय हो जाना मोक्ष समझना चाहिए। इन कर्मो का विशेष स्वरूप नियुक्ति में दिखलाऐंगे ॥ १२ ॥ #1 ભેદ છે 'तश्वार्थनियुक्ति - जीव, अजीव, बन्ध, पुण्य, पाप, आस्त्राव, संबर, निर्जरा और मोक्ष, इन उतराध्ययनसून में प्रतिपादित नौ तत्वों में से, क्रमानुसार जीव से लेकर निर्जरा पर्यन्त आठ तत्वों का आठ अध्यायों में एक-एक को एक-एक अध्याय में विस्तारपूर्वक प्ररूपण किया गया.. કર્મીના ....ભેદ છે, નરકાસુતિય ચાયુ આદિના ભેદથી આયુકમના ચાર ગતિનામ, જાતિનામ આદિના ભેદથી નામકમના ત્રાણ ભેદ છે ઉચ્ચ અને નીચના ભેદથી ગાત્રકમ એ પ્રકારના છે. દાનાન્તરાય આદિના ભેદથી અન્તરાય उभना यांच लेहमछे. भावी रीते यांथ, नव, यावीस, में, यार, भागु में अने यांय (५+८४२४×२X४X३X२५५) मणीने शेम्स। अताडी' (१४८) उ પ્રકૃતિઓના ફાય થઈ જવા માક્ષ સમજવા જોઇએ. આ કર્યાંનુ વિશેષ સ્વરૂપ निर्युतिभां दर्शावीशु ॥ १४॥ Pr '' Jh 1 1 " 3 }' : तत्त्वार्थं नियुठित-७, मलव, अन्ध, નિર્જરા અને મેક્ષ આ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્રમાં ક્રમાનુસાર જીવથી લઇને નિરા પન્ત આઠ એક એકનું એક એક અધ્યાયમાં વિસ્તારપૂર્વક નવમા મેાક્ષતત્વની પ્રરૂપણા કાજે નવમાં અધ્યાય પ્રારંભ કરવામાં આવે છે पुण्य, चाय, शासन, सौंदर,' પ્રતિપાદિત નવ તત્વામાંથી તત્વાનુ આઠ અધ્યાયામાં પ્રરૂપણ કરવામાં આવ્યૂ હવે
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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