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________________ दीपिका-नियुक्ति टीका अ६ सु.४७ श्रुतज्ञानस्य द्वैविध्यम् ७९१ पविष्टश्चैव, अङ्गबाह्यश्चैव, इति । नन्दिसूत्रे-४४ सूत्रो चोक्तम्-'ले कि तं अंगपविठं ? दुवालसविहं पण्णत्तम् तं जहा-आधारो १ सुथगडे२ ठाण३ समवाओ४ विवाह पण्णत्ती५ नायाधम्मकहाओ६ उघालणदखाओ७ अंतगडदसाओ८ अणुत्तरोववाहयदशाओ९ पण्हायागरणाइं१० विवागसुय११ दिहिवाओ१३ इति । अथ किं तत्-अङ्ग भविष्टस् ? द्वादशविधं पज्ञप्तम् तद्यथा-आचार:-सूत्रकृतम् स्थानम् समवायः माख्यामज्ञप्तिः ज्ञाताधर्मकथा-उपासकदशा-अन्तकृदशा-अनुत्तरोपपातिकशा प्रश्नव्याकरणम् विपाकश्रुतम् दृष्टिवादः इति । तदग्रे च नन्दिनने ४४ सूत्रे एवोक्तद्-'अंगवाहिरं दुवि पण्णतं, तं जहा-आवरलयं छ, आवरलयक्ष रित्तं च, से कि तं आवस्वयं ? आक्षरलायं छठिवहं पण्णतं, तं जहा-सामायं-चउवीसत्यवो वंदणयं पडिक्कमणं काउलग्गो पच्चाक्खाणं लेतं आधस्सयं । से किं तं आवस्सयवहरितं ? आवस्यवहितंदुविहं पण्णत्तं है, वह इस प्रकार है-अगप्रविष्ट और अंगवाहा।। नन्दी सूत्र के सूत्र ४० में कहा है-अंगप्रविष्ट श्रुत कितने प्रकार का है ? (उत्तर-) बारह प्रकार का है, यथा-(१) आचार (२) सूत्रकृत (३) स्थान (४) समवाय (५) व्याख्याप्रज्ञप्ति (६) ज्ञातधर्मकथा (७) उपासकदशा (८) अन्तकृद्दशा (९) अनुत्तरोषपातिक (१०) प्रश्नव्याकरण (११) विपाकश्रुत (१२) दृष्टिवाद ।। इससे आगे नन्दीखून में ही सून ४४ में कहा है-अंगबाह्यश्रुत दो प्रकार का है-आवश्यक और अवश्यक व्यतिरिक्त । आवश्यक के कितने भेद हैं ? (उत्तर-) आवश्यक के छह भेद हैं-सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दनक, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान । आवश्यक व्यतिरिक्त के कितने भेद हैं ? (उत्तर-) आवश्यक व्यतिरिक्त के दो भेद हैं, यथा નંદીસૂત્રના ૪૦ માં સૂત્રમાં કહ્યું – અંગાવિષ્ટ કૃત કેટલા પ્રકારના छ ? उत्तर भार ना छ (१) माया२ (२) सूत्रकृत (3) स्थान (४) समपाय (५) व्याध्याप्रति () ज्ञाताधम था (७) पास४६ (८) मन्त। (6) मनुत्त५पाति: (१०) प्रश्नव्या४२९५ (११) विपाश्रुत मने (१२) दृष्टिवाह. આથી આગળ નંન્દીસૂત્રમાં જ ૪૪ માં સૂત્રમાં કહ્યું છે–અંગબાહ્ય ત બે પ્રકારના છે આવશ્યક અને આવશ્યક વ્યતિરિકત. આવશ્યકના કેટલા ભેદ છે? ઉત્તર–આવશ્યકના છ ભેદ છે-સામાયિક ચતુર્વિશતિસ્તવ, વંદા પ્રતિક્રમણ કોચાત્સર્ગ અને પરચખાણ. આવશ્યકતિરિકતના કેટલા ભેદ છે ? ઉત્તર–આવ
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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