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________________ तत्वार्थसूत्र इदिय कलाया सुभयोगासव' इत्यादि । इन्द्रिय कपाया शुभयोगायतक्रिया भेदत:-इन्द्रियाणि स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्र भेदेन पञ्चविधानि, कपाया:-क्रोध मांन माया लोगभेदेन चतुविधा, अशुभयोगा मनोवाकायभेदेन विविधाः, अंततानि-हिंसा-नृत-रतेय-मैथुन-परिग्रह भेदेन पञ्चविधानि, शिगाव-कायि फ्यादि भेदेन पञ्चविंशविविधाः, इत्येवं रीत्या-इन्द्रिय कपाया-ऽव्रतक्रियाणाम्एकोनचत्वारिंशद् भेदार साम्पायिककर्मास्त्रवाः-संसारपरिमणकारणभूतस्य साम्परायिककर्मणो हेतुरूपा मास्ना एकोनचत्वारिंशदुविधाः भवन्ति । तत्रेन्द्रिय कषाया-ऽन्नतानां भेदाः प्रदर्शिताः एव- क्रियाः पञ्चविंशतिविधा:-पथा कायिकी, कायेन निवृत्ता-कायिकी काय व्यापारः-१ आधिकरणिकी, अधिक्रियते -आत्मा नरकादिषु येन-तदधिकरणम्, इह खजादिकं वस्तु विवक्षितम्। तत्र भवा..', स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु और श्रोत्र के भेदों से पांच इन्द्रियां, क्रोध, मान, माया और लोभ के भेद ले चार प्रकार के कषाय, मन, वचन और काय के भेद से तीन प्रकार के योग, हिंसा, अमत्य, चौर्य अब्रह्मचर्य और परिग्रह के खेद से पांच प्रकार के अनन, कायिकी आदि के भेद से पच्चीस प्रकार की क्रिया, ये सब साम्पराधिक कर्म के कारण होते हैं, जो भवभ्रमण के कारण होते हैं। इन में से इन्द्रियों, कषायों और अव्रतों के भेद निरूपित किये जा चुके हैं, क्रियाएं पच्चीस इस प्रकार है (१) कायिकी-काया लेसिया जाने वाला व्यापार । (२) आधिकरणकी-जिसके कारण मारमा नरक भादि का अधिकारी बने । अधिकरण का अर्थ है खड्ग आदि हिला के साधन, उन से होने वाली क्रिया। २५शन, २सना, प्रा, यक्षु मने त्रिना मेथी पांय इन्द्रयो, ध, માન, માયા અને લેભના ચાર પ્રકારના કષાય, મન, વચન અને કાયના ભેદથી ત્રણ પ્રકારના રોગ, હિંસા, અસત્ય, ચર્ય, અબ્રહ્મચર્ય અને પરિગ્રહના ભેદથી પાંચ પ્રકારના અવ્રત, કાયિકી આદિના ભેદથી પચ્ચીસ પ્રકારની કિયા, આ બધાં સામ્પરાયિક કર્મના કારણે હોય છે, જે ભવભ્રમણના પણ કારણે છે. આમાંથી ઇન્દ્રિયો, કષાય અને અગ્રતના ભેદનું નિરૂપણ કરી દેવામાં આંધ્યું છે પચ્ચીસ ક્રિયાઓ આ પ્રકારે છે.a (1) यिश्री-याथी ४२१ामा मात। व्यापा२. (૨) આધિકરણિકી–જેના કારણે આત્મા નરક આદિને અધિકારી બને અધિકરણને અર્થ છે ખડૂગ આદિ હિંસાના સાધન, તેનાથી થનારી ફિયા
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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