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________________ दीपिका नियुक्ति टीका अ. ६ ए. ५ साम्परायिककर्मा स्त्रवभेदनिरूपणम् ३१ माया लोभा वोच्छिन्ना भवति, तस्स णं-ईरियावहिया किरिया कउजड़े नो सांपराइया किरिया कज्जह, जस्स णं कोहमाण मायालोमा अवो भवति तस्स णं संपरायकिरिया कज्जइ नो ईरिया वहिया' इति । यस्य खलु क्रोध मान माया लोभाः व्युच्छिन्ना भवन्ति तस्य खल- ऐयाँafrat क्रिया क्रियते नो साम्परायिकी क्रिया क्रियते । यस्य खल-क्रोध मान मान माया लोभाः अव्युच्छिक्षा भवन्ति, तस्य खलु साम्परायिकीं क्रिया क्रियते नो ऐयपथिकी, इति |४| 152 मूलम् - इंदियकसाया सुभोगाव्यकिरिया भेदओ संपराइय कम्मासवा वायालीसविहा ॥५॥ छाया - 'इन्द्रिय कपाया शुभयोगाऽवतक्रियाभेदतः साम्परायिककर्मास्रवाः - द्विचत्वारिंशद्विधाः ॥५॥ तत्वार्थदीपिका - पूर्व तावत् - साम्परायिकस्य - ऐर्यापथिकस्य च कर्मणो द्विविधः प्ररूपितः सम्प्रति साम्परायिककर्मास्रवभेदान मरूपयितुमाह पाये जाते हैं । भगवनीसूत्र के सातवें शतक के प्रथम उद्देशक के २६७ वें सूत्र में कहा है-जिस जीव का क्रोध, मान, माया और लोभ का विच्छेद हो जाता है, उसे ऐर्यापथिकी क्रिया होती है साम्परायिक क्रिया नहीं होती और जिस जीव के क्रोध, मान, माया और लोभ का विच्छेद नहीं शेता, उसके साम्परायिक क्रिया होती है, ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं | -४ ॥ 'इंदियकसाया सुभओगा' इत्यादि । इन्द्रिय, कषाय, शुभयोग अव्रत और क्रिया के भेद से साम्पराfre कर्मा के बयालीस भेद हैं ||५|| तत्वार्थदीपिका -- साम्परायिक और ऐर्यापथिक के भेद से आव के दो भेद कहे जा चुके हैं, अय साम्परायिक कर्मास्रव के भेदों का प्रतिपादन करने के लिए कहते हैं શતકના પ્રથમ ઉદ્દેશકના ૨૬માં સૂત્રમાં કહ્યું છે-જે જીવેાના ક્રોધ, માન, માયા અને લેભના વિચ્છેદ થઇ જાય છે તેની ઐપિાર્થિક ક્રિયા જ હોય છે, સામ્પરાયિક ક્રિયા હાતી નથી અને જે જીવાના ક્રોધ મન, માયા, તથા લાભના નાશ થતા નથી તેની સામ્પરાયિક ક્રિયા હૈાય છે, એં/પથિક'ક્રિયા होता नथी. !!४!! 'इंदियकसाया सुभजोगा' इत्याहि सुत्रार्थ – इन्द्रिय, उषाय, शुलयोग, अव्रत भने डियाना लेहथी साभ्यરાયિક ક્રમ્મસવના ખેંતાળીસ ભેદ છે. તત્વાર્થદીપિકા—સામ્પરાયિક અને અય્યપથિકના ભેથી આસ્રવના એ ભેદ કહેવામાં આવી ગયા છે, હૅવે સામ્પાયિક કર્મોત્સવના ભેદોનુ' પ્રતિપાદ્દન ફરવા માટે કહીએ છીએ
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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