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________________ दीपिका-नियुक्ति टीका २.८ ८.२१ योगप्रति खलीनतातपसः निरूपणम् ६६९ नवा १ बचोयोगपतिसंलीनार काययोगप्रदिसंकीनता ३ अथ का सा मनोयोगप्रतिसंलीनता मनोयोगमविलीनता अकुशमनोशिधो वा, कुशल मन उदीरणं वा, सा एषा मनोयोगपतिस लीनता ? अथ का सा वचोयोगप्रति संलीनता ? वचोयोगपतिस लीनता अकुशलवचो निरोधो वा, कुशल चच उदीरण वा सा एप वचोयोगमनिस लीनता, अथ का सा काययोग प्रतिस लीनता ? काययोग मतिसंलीनता यह खलु सुसमाहितपाणिपाद कूर्म इव गुप्तेन्द्रियः सर्व गात्रघतिस लीनास्तिष्ठति सा एषा काययोगमविसकीनता इति ॥२१॥ मूलम् - विवित लयणासणलेवणया तवे अणेगविहे, इत्थी - आइविरहिया - भोगट्टामणिवालभेयओ ॥२२॥ प्रन - मनोयोग प्रतिस लीनता किसे कहते हैं ? उत्तर- अकुशल मनोव्यापार का निरोध करना और कुशल मन की प्रवृत्ति करना मनोयोग प्रतिललीनता है । प्रश्न -- वचनयोगप्रति संलीनता किसे कहते हैं ? उत्तर - अकुशल वचनों का विरोध करना और कुशल वचनों की उदीरणा करना वचनयोगप्रति संलीनता तप है। प्रश्न -पाययोगप्रति संलीनता किसे कहते है ? उत्तर-- हाथों-पैरों का संगोपन करना इन्द्रियों का गोपन करना और सम्पूर्ण शरीरका गोपन करना अर्थात् कायिक व्यापार का निरोध कर देना कायप्रति संलीनता तप है ॥२१॥ 'विचिप्यणालण' इत्यादि सू० २२ सूत्रार्थ - विविक्त शयनासन सेवनता तप के अनेक भेद हैं, जैसे- स्त्री आदि से रहिए अनेक स्थानों में निवाल करना आदि ॥ २२ ॥ પ્રશ્ન-વચનચે ગપ્રતિસલીનતા કાને કહે છે. ? ઉત્તર-અકુશળ વચનાના નિરાધ કરવા અને કુશળ વચનાની ઉદીરણા કરવી વચનચે ગપ્રતિસ'લીનતા તપ છે, પ્રશ્ન-કાયયાગપ્રતિસ લીનતા કાને કહે છે ? ઉત્તર-હાથ પગનું સંગેાપન કરવુ' ઇન્દ્રિયાને ગેાપવી અને સ પૂર્ણ શરીરનુ' ગેપન કરવું' અર્થાત્ કાયિક વ્યાપારના નિરણ કરી દેવા કાયપ્રતિ સલીનતા તપ છે !! ૨૧ " 'वित्तियणा सण से वणया' त्यिाहि । દ્રાવિવિક્ત શયનાસનસેષનતા તપના અનેક ભેદ છે જેવા કે સ્ત્રી આદિથી રહિત અનેક સ્થાનામાં નિવાસ કરવા વગેરે ા રર !
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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