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________________ तत्वार्थस्त्र दुर्भग ७-दुस्वश ८-उनादेया ९-ऽयशः कीर्तिनामानि ३२-इति, उपघातनामा ३३-ऽशुपविहायो गनिः ३४ । (७६) नोचैर्गोत्रम् ७७ -पञ्चविधमन्तरायम्-८२ तदेवं पुण्यपापकर्मणोः शुभाऽशुभौ योगी-आस्रवो भवतः ।। उक्तश्चोत्तराध्ययने २८अध्ययने १४-गाथायाम्-'पुण्णपावासवो तहाइति। पुण्य-पापास्त्रवस्तथा ॥२॥ मूलम्-सकसायस्स जोगो संपरायकिरियाए ॥३॥ छाया-'सकपायस्य योगः सम्परायक्रियायाः-॥३॥ तत्वार्थदीपिका-पूर्व पुण्यपापकर्मणोः शुभाऽशुभयोगौ आस्रवरूपौ प्ररूपितो, सम्प्रति-सम्परायक्रियाया आखवं प्ररूपयितुमाह-'सकसायस्स जोगो संपराय (४) साधारण शरीर (५) अस्थिर (६) अशुभ (७) दुर्भग (८) दुःस्वर (९) अनादेय (१०) अयशाकीर्ति (३३) उपघातनामकर्म (३४) अशुभ विहायोगलिनामकर्म (७७) नीचगोत्र (७७-८२) पांच अन्तराय । इस प्रकार शुभयोग और अशुभयोग पुण्य और पाप के कारण होते हैं। . उत्तराध्ययनसत्र के २८ वें अध्ययन की चौदहवीं गाथा में कहा है-'पुण्णपावासवो तहा' अर्थात् पुण्य का और पाप का आस्रव होता है ।।२॥ सूत्रार्थ 'सकसायस्स जोगो' इत्यादि । कषाययुक्त जीव का योग सम्परायक्रिया के आस्रव का कारण होता है ॥३॥ - तत्वार्थदीपिका-पहले बतलाया गया है कि शुभ योग पुण्य के और अशुभ योग पोप के आस्रव का कारण है । अब साम्परायिक क्रिया के (५) मस्थि२ (6) अशुम (७) हुम (८) १२ (6) अनाय (१०) अयश: प्रीति (33) पाघातनाम ४ (३४) भशुभविडायोतिनाम ४ (७७) નીચગવ્ય (૭૮-૨) પાંચ અન્તરાય આવી રીતે શુભયોગ અને અશુભયોગ પુણ્ય અને પાપના કારણ હોય છે. ઉત્તરાધ્યયનસૂત્રનાં ૨૮માં અધ્યયનની ચૌદમી ગાથામાં કહ્યું છે'पुण्णपावासबो तहा' अर्थात पुश्यने। अने पापन। सासव थाय छे. ॥२॥ 'सकायस्स जोगो संपरायकिरियाए' સૂવાથ–કષાયયુક્ત જીવને એગ સમ્પરાયક્રિયાના આસ્રવનું કારણ हाय छे. તત્વાર્થદીપિકા પહેલા બતાવવામાં આવ્યું કે શુભયોગ પુણ્યના અને અશુભ યોગ પાપના આમ્રવના કારણે છે. હવે સમ્પરાંયિક ક્રિયાના આસ્રવની પ્રરૂપણ કરીએ છીએ
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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