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________________ - दीपिका-निर्युक्ति टीका अ. ६ रू. २ पुण्यपापयोः आसबकारणनिरूपणाडू १९ . द्वयधिकाशीतिविधं पापकर्म, तत्र-पश्चज्ञानवरणानि-५ नन दर्शनापरणी. यानि-१४ असातावेदनीयम्-१५, पविशतिविधं मोहनीयम्-४१ अष्टाविंशतिविधेषु मोहनीयेषु सम्यक्त्व-सम्पमिथ्यात्व प्रकृतिद्वयस्य पापकर्मस्वं न सम्भाति, • यतोऽनयोर्वन्धो नाल्ति, केवलं मिथ्यात्वमेवैकं बद्धं सत् पापशनतया परिणमते । एवं-नरकायुष्पम् ४२-गामक्रम चतुस्त्रिंशद् विधम् तथाहि-नरक गति१-नरकामपूर्वी २-तिर्यग्गति ३-तिर्यगानुपूर्वी ४-रकेन्द्रियजाति चतुष्टयम् ८-दशसंहननसंस्थानानि १८-अप्रशस्तवर्णादि चतुष्टयम् २२-स्थावरनामदशविधम्, तथाहिस्थावर १-सूक्ष्मा २-ऽपर्याप्त ३-साधारण शरीरा ४-ऽस्थरा ५-ऽशुभ ६ पाप कर्म वयासी प्रकार का है, यथा-(१-५) पांच ज्ञानावरण (६-१४) नौ दर्शनावरण (१५) आसातावेदनीय (१६-४१) छबीन मोहनीयकर्म की प्रकृतिमा-मोहनीय कर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों में से सम्यक्त्वमोहनीय और मिश्रमोहनीय नामक दो प्रकृतियां पापकर्म प्रकृतियों में परिगणित नहीं है क्योंकि उनका बन्ध नहीं होता, केवल मिथ्यात्व प्रकृति का वध होता है और वह पाप कर्म के रूप में परिणत हो जाती है (४२) नरकायु (४३-७६) चौंतील प्रकार का नाम कर्म, यथा--(१) नरकगति (२) नरकानुपूर्वी (३) तिथंचगति (४) तियं चानुपूर्वी (५-८) एकेन्द्रिय आदि चार जातियां अर्थात् एकेन्द्रिय जाति, दीन्द्रियजाति, ब्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रियजाति (९-१८) पांच संहनन और पांच संस्थान (१९.२२) अप्रशस्त वर्ण, गंध, रस, स्पर्शनाम. कर्म (२३-३२) स्थावरदशक, घथा-(१) स्थाचर (२) (सक्षम (३) अपर्याप्त ___ या५: ज्या ५४२ना छ,-(१-५) पांय ज्ञाना१२५ -१४) न१ દર્શનાવરણ (૧૫) અશતાવેદનીય (૧૬-૪૧) છવ્વીસ મેહનીય કર્મની પ્રકૃતિઓ મોહનીય કર્મની અઠ્ઠાવીસ પ્રકૃતિઓમાંથી સમ્યકત્વ મેહનીય અને મિશ્ર મેહનય એ પ્રકૃતિએ પાપકર્મ પ્રવૃતિઓમાં પરિગણિત નથી કારણ કે તેમનો બન્ધ થતું નથી, માત્ર મિથ્યાવપ્રકૃતિને બધ થાય છે અને તે પાપકર્મના રૂપમાં પરિણત થઈ જાય છે (૪૨) નરકાયુ (૪૩-૭૬) ચૈત્રીસ પ્રકારના નામ ४ यथा-(१) न२४गति (२) नाति भानुभूती (3) तिय गति (४)तिय" અપૂવી (પ-૮) એકેન્દ્રિય આદિ ચાર જાતિઓ અર્થાત્ એકેન્દ્રિય જાતિ, બે ઈન્દ્રિય જાતિ, તેઈન્દ્રિય જાતિ, ચતુરીન્દ્રીય જાતિ (૯-૧૮) પાંચ સંહનન અને याय संस्थान (१८-२२) मप्रशस्तवर्ण, 'ध, २४, २५श नम भ. (२३-३२) स्था१६२३४ यथा-(१) स्था१२, (२) सूक्ष्म (3) मपात (४) साधारण
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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