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________________ २३८ . तत्त्वार्थो सोदयादचे सपापहः, अरत्युदयादरविपरीषहः उच्यते, स्त्रीवेदोदयात्-स्त्रीपरीपहः भयोदयात्स्थानाऽसे वित्वलक्षणो निषद्यापरीषहः क्रोधोयाद्-आक्रोशपरीषदः, मानोदयाद्-याश्चाएरीपहः लोमोदयात्-सत्कापुरपरीषहः सम्भवति । तथाचोक्त व्याख्यापज्ञप्तौ भगवतीमत्रे ८-शतके ८-उद्देशके-'चरित्त मोहणिज्जेणं भंते ! कम्मे कइ परिसहा समोधरंति ? गोयमा ! लत्तपरीसहा समोयरंति तं जहा-अरती अचेल इत्थी निसीहिया जायणा य अकोसे सकार पुरकारे चरित्तमोहमि सत्तेते ॥१॥ इति, चारित्रमोहनीये खलु मदन्त! कर्मणि कति परीपहाः समवतरन्ति ? गौतम ! सप्तपरीषहाः समवतरन्ति, तद्यथा अरति, रचेल स्त्री, निषद्या, याचना, च-आक्रोशः सत्कार पुरस्कार श्चारित्रमोहे सप्तते । १।। इति ॥१४॥ है। इस चारित्रमोहनीय कर्म के उदय ले अरति आदि सात परीषह होते हैं । जुगुहा मोह कर्म के उदय से अचेल परीषह होता है, अरति कर्म के उदय से अरतिपरीषह होता है, पुरुषवेद के उदय से . स्त्रीपरीषह होता है, भय के उदय से स्थान का सेवन रूप निषधापरी पह होता है, क्रोध के लय से आक्रोशपरीषद होता है, मान के उदय से याचनापरीषह होता है और लोभ के उदय से सत्कार पुरस्कार परी पंह उत्पन्न होता है। भगवतीसूत्र के शनक ८ के उद्देशक ८ में कहा है-'भगवन् ! चारित्रमोहनीय कर्म के उदद ले कितने परीषद होते हैं ? उत्तर-गौतम ! लात परीषह उपन्न होते हैं, वे यह है(१) अरति, अचेल, स्त्री, निषद्या, याचना और आक्रोश । चारित्रमोहनीय कर्म के होने पर ये सान परीषत होते हैं ॥१४॥ અરતિ વગેરે સાત પરીવાડ થાય છે. જુગુપ્સા મે હ કર્મના ઉદયથી અલ પરીષહ થાય છે, અરતિકર્મના ઉદયથી અરતિપરીષહ થાય છે, પુરૂષદના ઉદયથી સ્ત્રી પરીષ થાય છે, ક્રોધના ઉદયથી આક્રોશપરીષહ થાય છે, માનના ઉદયથી વાચનાપરીષ ડ થ ય છે અને તેમના ઉદયથી સક પુરસ્કા૨પરીવહુ ઉત્પન્ન થાય છે. ભગવતીસૂત્રના શતક ૮ના ઉદ્દેશક ૮માં કહ્યું છે–“ભગવાન ! ચારિત્રમહનીય કર્મના ઉદયથી કેટલા પરીષહ હોય છે? -गौतम ! सात ५५ अत्यन्न थाय छ, त म शत-(१) भति (२) अन्येस, (3) श्री (४) निषा (५) यायना (6) मोश भने (૭) સત્કાર પુરસ્કાર ચારિત્ર મોહનીય કર્મનો ઉદય થવાથી આ સાત પરીષહ થાય છે, ૧૧૪
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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